संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई बुक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: तिरंगा
टीम
लेखक: तरुण कुमार वाही | सहयोग: दिलीप चौबे, विवेक मोहन | चित्रांकन: दिलीप चौबे | चित्र सहयोग: विनीत सिद्धार्थ | सुलेख: दीपिका
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
दिल्ली में होने वाले बम ब्लास्टों के पीछे मौजूद एक्स को तिरंगा ने पकड़ तो लिया था लेकिन वह नहीं जान पाया था कि दिल्ली में होने वाला अगला धमाका कहाँ होगा। एक्स कोमा में था और बम की जानकारी उससे हासिल हो पाना नामुमकिन था।
तिरंगा को बस ये पता था कि अब फटने वाले बम में इतना आर डी एक्स का प्रयोग होगा कि दिल्ली की ईंट से ईंट बज जायेगी।
इसलिए बम का पता लगाने के लिए तिरंगा ने दिया एक बलिदान।
उसने अपनी पहचान, अपने चेहरे को बदल दिया उस एक्स से जिसके चेहरे से भी उसे नफरत थी।
क्या तिरंगा का ये बलिदान कामयाब हो पाया?
क्या वो उस खतरे को खत्म कर पाया जो दिल्ली पर मंडरा रहा था?
क्या वो ढूँढ पाया वो आर डी एक्स?
मेरे विचार
‘आर डी एक्स’ राज कॉमिक्स द्वार प्रकाशित तिरंगा का कॉमिक बुक है। ‘आर डी एक्स’ तिरंगा के कॉमिक्स ‘एक्स फाइल’ एक दूसरा भाग है। कॉमिक बुक 1998 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। यह कॉमिक मूल रूप से अंग्रेजी फिल्म फेसऑफ से प्रेरित है और इस चीज का जिक्र ‘एक्स-फाइल’ में ही हो जाता है।
कहानी की बात करें तो ‘आर डी एक्स’ की कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ से ‘एक्स-फाइल’ की खत्म हुई थी। ‘एक्स-फाइल’ के अंत में हम देखते हैं कि तिरंगा फैसला लेता है कि दिल्ली में छिपाए गए आर डी एक्स को केवल एक्स गैंग में शामिल होकर ही ढूँढा जा सकता है। इस योजना को पूरी करनें हेतु डॉक्टर राय फेस ऑफ फिल्म से प्रेरित होकर किसी व्यक्ति से एक्स का चेहरा बदलने की सलाह देते हैं। तिरंगा अभय बनकर ये कार्य करता है। इसके बाद कैसे तिरंगा आरडीएक्स का पता लगाता है? इस दौरान उसके सामने क्या-क्या मुसीबतें आती हैं। कोमा में पड़ा एक्स क्या करता है? क्या दिल्ली के ऊपर मंडराते खतरे को तिरंगा किसी तरह हटा पाता है? इन सब सवालों एक जवाब ही कथानक बनते हैं।
चूँकि कहानी 29 पृष्ठों की हैं तो इसको बिना वजह फैलाया नहीं गया है। कहानी में एक तरफ हम ये देखते हैं कि एक्स बना तिरंगा किस तरह से जानकारी निकलवाता है वहीं दूसरी तरफ एक्स को भी कोमा से उठते देखते हैं। कोमा से उठने के वो क्या करता है और किस तरह से वो तिरंगा के काम में रोड़ा डालता है ये देखना रोचक रहता है। इन दोनों का टकराव मनोरंजक रहता है।
कहानी सीधी सादी है। यह एक एक्शन कॉमिक है जिसमें अधिक ट्विस्ट नहीं हैं। कॉमिक बुक का अंत रोचक है और आगे जाकर तिरंगा का क्या होगा ये सोचने पर मजबूर कर देता है।
कथानक में मौजूद कमी की बात करूँ तो इक्का दुक्का बातें थीं जो बेहतर हो सकती थी।
कहानी में जब तिरंगा एक्स गैंग में शामिल होता है तब वो याददाश्त खोने का नाटक करता है। इसके बाद एक बार उसकी याददाश्त लौट आने का प्रसंग भी आता है। यहाँ इस याददाश्त के लौट आने वाली घटना को जितनी जल्दी गैंग के सदस्य बिना कोई टेस्ट लिए मान जाते हैं वो थोड़ा कथानक को कमजोर बनाता है। यह इसलिए भी क्योंकि इससे पहले गैंग के सदस्य जेड द्वारा काफी सूझ बूझ दर्शाई जाती है। अगर उसे अपनी याददाश्त के लौट आने का सबूत भी मांगा जाता तो वो ज्यादा बेहतर कहानी बनती और जेड के किरदार के अनुरूप भी रहता।
चूँकि यह कॉमिक बुक 32 पृष्ठ का था और उसमें से कहानी के लिए 29 पृष्ठ के करीब ही था। ऐसे में यहाँ 2 पृष्ठ केवल इसलिए प्रयोग करना ताकि एक्स फाइल की मोटी मोटी जानकारी दे सकें मुझे पाठक के रूप में खला। कॉमिक बुक की शुरुआत में एक अनुच्छेद में ये कार्य किया जा सकता था और इन दो पृष्ठों का प्रयोग कहानी को और रोमांचक बनाने में किया जा सकता था।
एक्स की गैंग कहानी में है तो लेकिन जिस तरह से उसका अंत दर्शाया गया है वो जल्दबाजी में किया गया लगता है। मुझे लगता है कि एक्स बने तिरंगा और एक्स गैंग के बीच रोमांचक मुठभेड़ दर्शाई जा सकती थी। यह उन दो पृष्ठों में आ जाता जिन्हें फ्लैशबैक में खर्च किया गया।
कॉमिक बूक के आर्ट वर्क की बात की जाए तो वो ठीक ठाक ही है। इधर चित्रकार ने कार्टूनिश आर्ट प्रयोग किया है। मुझे लगता है कि तिरंगा के कॉमिक थोड़ा सीरीअस टाइप होते हैं तो ऐसे कैरकेचर वाले आर्ट इसमें न होता तो बेहतर होता। जिस तरह का आर्ट इसमें प्रयोग किया गया है वो किसी हास्य चित्र कथा के लिए बेहतर था।
अंत में यही कहूँगा कि तिरंगा के ये दोनों कॉमिक बूक एक बार पढ़े जा सकते हैं। कॉमिक बुक आपका मनोरंजन करती हैं।
पुस्तक लिंक: अमेज़न