पुस्तक टिप्पणी: हॉरर डायरीज़ #4.2: खूनी खिलौना | फिक्शन कॉमिक्स | सुशांत पंडा

पुस्तक टिप्पणी: हॉरर डायरीज़ #4.2: खूनी खिलौना | फिक्शन कॉमिक्स | सुशांत पांडा

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | प्रकाशक: फिक्शन कॉमिक्स | पृष्ठ संख्या: 20

टीम

लेखन व चित्रांकन: सुशांत पंडा | कलर्स: बसंत पंडा | फ्लैट कलर्स व कैलिग्राफी: हरीशदास मानिकपुरी | सहसम्पादक: अनुराग कुमार सिंह | सम्पादक: सुशांत पंडा

कॉमिक बुक लिंक: फिक्शन कॉमिक्स

कहानी

सागर को हॉरर टॉयज से खेलना और हॉरर कॉमिक बुक्स पढ़ना बहुत भाता था। अपनी माँ, कृतिका, से वह इन्हीं चीज़ों की माँग अक्सर किया करता था।

कृतिका की वह इकलौती संतान थी तो वो भी एक हद तक उसकी इच्छाओं को पूरा कर देती थी।

पर उस दिन जब मॉल में सागर ने उस हॉरर टॉय को लेने की ज़िद की तो उसने उसकी एक न मानी और कुछ हॉरर कॉमिक्स दिलवाकर उसे वापस ले आयी।

लेकिन उसकी हैरानी का तब ठिकाना न रहा जब उसे वही हॉरर टॉय अपने घर में दिखा।

आखिर ये हॉरर टॉय घर कब आया था?
कृतिका उस हॉरर टॉय को घर क्यों नहीं लाना चाहती थी?

टिप्पणी

‘खूनी खिलौना’ फिक्शन कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित हॉरर डायरीज़ शृंखला का कॉमिक बुक है। सुशांत पंडा द्वारा कॉमिक बुक लिखा भी गया है और इसका चित्रांकन भी किया गया है।

कॉमिक बुक के केंद्र में कृतिका और उसका बच्चा सागर हैं। सागर की इच्छा एक हॉरर टॉय को पाने की है और जब कृतिका के घर उसके ना चाहते हुए भी वो टॉय आ जाता है तो उनकी ज़िंदगी में जो होता है वह ये कहानी बनती है। 20 पृष्ठों में फैली यह कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ती है वैसे वैसे कृतिका की गुज़री जिंदगी के विषय में भी कुछ बातें पता चलती हैं और वो कथानक में रोमांच को बनाए रखती है। कृतिका की गुजरी ज़िंदगी और वर्तमान ज़िंदगी के बीच झूलती कहानी में लेखक ट्विस्ट बरकरार रखने में कामयाब होते हैं। कहानी आपको बाँधकर रखने में कामयाब होती है।

कहानी की कमी की बात करूँ तो कुछ एक बिंदु हैं जो मुझे व्यक्तिगत तौर पर खटके।

अधिकतर भारतीय घरों में दीवार खोखली नहीं होती है पर कॉमिक बुक में दीवार का खोखला होना एक महत्वपूर्ण बिंदु है। मुझे लगता है अधिकतर दीवारें उस जगह ही खोखली बनायी जाती हैं जहाँ तूफान इत्यादि अधिक आता है। विदेशों में विशेषकर अमेरिका में इसका प्रयोग अधिक होता है लेकिन भारत में इतना प्रयोग नहीं होता है। ऐसे में भारतीय परिवेश में दीवार का इतना खोखला दिखाया जाना कि उसमें एक मनुष्य समा सके अधिकतर पाठकों को अटपटा लग सकता है। हो सकता है भारत में भी कुछ जगह दीवारें इस तरह खोखली बनती हो जिससे लेखक ने प्रेरणा ली हो पर बेहतर होता लेखक जो दर्शाना चाहते हैं उसे दर्शाने के लिए कोई और तरीका अपनाते।

इसके अतिरिक्त कॉमिक बुक में दो मुख्य घटनाएँ ऐसी होती हैं जो कि हिंसक हैं और जब ये घटित हुई होंगी तो शोर शराबा भी हुआ होगा। पर सागर इन दोनों ही घटनाओं के समय घर पर ही था लेकिन तब भी इन दोनों ही घटनाओ के दौरान वह अनुपस्थित रहता है। उसकी अनुपस्थिति का कोई पुख्ता कारण नहीं दिया गया है। अगर दिया गया होता तो बेहतर होता।

आखिरी छोटी बात जो मुझे खटकी वह यह कि खिलौने वाली घटना एक दिन यूँ ही घटित हो गयी। क्या इस घटना को किसी चीज़ ने ट्रिगर किया था? उसके लिए उत्प्रेरक का कार्य किस चीज़ ने किया ये अगर दर्शाया जाता तो बेहतर होता।

यह बातें ऐसी हैं जो एक दो पृष्ठ बढ़ाकर ही शामिल की जा सकती थी और कहानी और सशक्त हो सकती थी।

इन बातों के अतिरिक्त कॉमिक बुक में मौजूद कुछ प्रूफ की गलतियाँ हैं जो खटकती हैं। अधिकतर गलतियाँ मात्राओं की हैं। जहाँ ‘इ’ की मात्रा होनी चाहिए उधर ‘ई’ की मात्रा लगायी है। कॉमिक बुक में टेक्स्ट कम होता है और ऐसे में अगर प्रूफ की गलतियाँ दिखें तो वह अधिक खटकती हैं। उम्मीद है अगले संस्करणों में इनमें सुधार कर दिया जाएगा।

कॉमिक बुक का आर्ट वर्क अच्छा है और कहानी के साथ न्याय करता है।

अंत में यही कहूँगा कि फिक्शन कॉमिक्स की हॉरर डायरीज़ शृंखला का कॉमिक बुक ‘खूनी खिलौना’ एक पठनीय रचना है। मनोरंजन करने में यह सफल होती है। ऊपर लिखी बातों पर ध्यान और दिया होता तो कहानी और सशक्त बन सकती थी। उम्मीद है फिक्शन और लम्बी कहानियाँ हॉरर डायरीज़ में लेकर आएगा।

कॉमिक बुक लिंक: फिक्शन कॉमिक्स


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Author

  • विकास नैनवाल

    विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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