संस्कार विवरण
फॉर्मैट: ई बुक | पृष्ठ संख्या: 311 | शृंखला: ऋषभ सक्सेना #2
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
आदर्श मालेकर पुणे का एक बड़ा बिजनेसमैन था जो कि अपने फ्लैट पर मृत पाया गया था।
पहले सबको लगा था कि उसने आत्महत्या की थी लेकिन फिर पुलिस को ये शक हुआ था कि उसकी हत्या की गयी थी।
पुलिस की माने तो इसमें इसके बिजनेस पार्टनर देवराज राणा का हाथ था।
पर देवराज खुद को बेकसूर बताता था और इसलिए उसने ऋषभ सक्सेना को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कहा था। ऋषभ के अखबार ‘न्यूज ऑन’ के संपादक महेश जोशी ने जब अपने दोस्त देवराज के मामले को देखने के लिए ऋषभ से कहा तो वो मना नहीं कर पाया।
क्या वाकई देवराज बेकसूर था?
क्या ऋषभ सच तक पहुँच पाया?
मुख्य किरदार
आदर्श मालेकर – पुणे का एक व्यापारी जिसका उसके फ्लैट में कत्ल हो गया था
ऋषभ सक्सेना – एक फ्रीलाँस फोटोग्राफर जो न्यूज़ ऑन के लिए भी कार्य करता है। कहानी का नायक
निरंजन – ऋषभ का दोस्त और पुलिस फोटोग्राफर
देवेश – पार्टीऑन बार का मालिक और ऋषभ का दोस्त
पलक जोशी – वह लड़की जिसे ऋषभ चाहता था।
महेश जोशी – न्यूज ऑन नामक अखबार का संपादक और पलक का पिता
सौरभ – पलक का प्रेमी
रोशन – पार्टी ऑन बार का बाउन्सर
शुभम तनेजा – पार्टी ऑन का मैनेजर
प्रधान – पुलिस इन्स्पेक्टर जो उस इलाके के कत्ल की इंवेस्टिगेशन देखता था
विनीत – ऋषभ का बड़ा भाई
मोनिका – विनीत की छह वर्षीय बेटी
वर्षा – विनीत की पत्नी
देवराज राणा – एक बड़ा व्यापारी और आदर्श का पार्टनर
विशाल म्हात्रे – देवराज का पर्सनल असिस्टेंट
कंचन साहनी – देवराज की प्रेमिका
कविता मुखर्जी – एक औरत जिसके साथ आदर्श के संबंध थे
निशिका राणा – देवराज राणा की मौजूदा पत्नी
करूणेश – आदर्श का सिक्योरिटी गार्ड
शोभित दास – आदर्श के घर काम करने वाला एक व्यक्ति
आराधना – आदर्श की पत्नी
तनीषा – आदर्श की बेटी
अंजना – तनीषा की दोस्त जिसके फ्लैट में तनीषा रह रही थी
मिसेज खोटे – आदर्श की पड़ोसी
प्रेमेन्द्र – एक बड़ा व्यवसायी जिसके यहाँ तनीषा नर्स का कार्य करती थी
दीपक राय – मालेकर का वकील
अभिज्ञान सिंह – फोटोग्राफी की दुनिया का बड़ा नाम
अभिलाष – साइबर क्राइम एक्सपर्ट
नितिन और सचिन उर्फ नॉटी शॉटी – दो दोस्त जो पैसे के लिए छोटे मोटे काम करते थे। वैसे मेकैनिक थे
सोनल – मिसेज खोटे की केयरटेकर
विचार
‘तीसरी कौन?’ लेखक अजिंक्य शर्मा की लिखी रहस्यकथा है। यह ऋषभ सक्सेना का दूसरा कारनामा है जिसमें वह अपने अखबार के संपादक महेश जोशी के कहने पर एक कत्ल की तहकीकात करने के लिए हामी भरता है।
उपन्यास की शुरुआत आदर्श मालेकर नामक एक व्यापारी के कत्ल के हो जाने और मौका-ए-वारदात से किसी के जाने और उस ‘किसी’ को किसी के द्वारा देखे जाने से होती है। इसके बाद ऋषभ मामले में अपने बॉस के कहने पर पड़ता है और उसकी तहकीकात में जो जो उजागर होता है उन साक्ष्यों का दामन थामकर वह कैसे भटकते भटकते असल मामले तक पहुँचता है ये देखना रोचक रहता है। कथानक आपको बांध कर रखता। कई बार लगता है कि मामला खुल सा गया है लेकिन जब वह आगे जाकर अटक जाता है तो आप आगे पढ़ते रहने को मजबूर से हो जाते हो। साथ ही इस बार चूँकि एक बार ऋषभ की खुद की जान पर बन आती है तो वह प्रसंग भी उपन्यास को और रोमांचक बना देता है। लेखक कातिल की पहचान आखिर तक छुपाने में सफल होते हैं। एक अच्छी रहस्यकथा का गुण ये होता है कि लेखक अक्सर बीच में एक ऐसा साक्ष्य छोड़ देता है जिसे आम पाठक तो नजरंदाज कर देता है लेकिन आगे चलकर जब वही कातिल का पता लगाने में कामयाब होता है तो पाठक हैरान रह जाता है। यहाँ भी लेखक ऐसा साक्ष्य छोड़ देते हैं और जिसके विषय में अंत में पता लगना मजेदार रहता है।
अक्सर अपराध साहित्य में शृंखलाबद्ध उपन्यासों का चलन रहा है। एक किरदार को लेकर लेखक कई उपन्यास लिखते रहे हैं लेकिन आम तौर पर हिंदी में ऐसा कम हुआ है कि इन शृंखलाबद्ध उपन्यासों में मुख्य किरदार के व्यक्तिगत जीवन के ऊपर अधिक रोशनी डाली गयी हो। यही कारण है कि अगर कथानक दो या तीन उपन्यासों में न खिंचा गया न हो तो आप किसी भी उपन्यास को कभी भी पढ़ सकते हैं और उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। यह आपको उस किरदार के उपन्यासों को कहीं से भी पढ़ने की स्वतंत्रता तो दे देता है लेकिन आपका उस किरदार से उतना जुड़ाव नहीं हो पाता है। पर ऋषभ सक्सेना के मामले में ऐसा नहीं है। ऋषभ के पहले उपन्यास जो घटनाएँ हुई उसका असर उसके दूसरे उपन्यास में दिखता है और इस दूसरे उपन्यास में उसके व्यक्तिगत जीवन से जुड़े कई पहलू भी देखने को मिलते हैं। फिर वह फोटोग्राफी को लेकर उसका पैशन हो या अखबार में उसके बदलते रिश्ते या फिर उसने पहले उपन्यास में जिस कारनामें को अंजाम दिया उसका उसकी निजी ज़िंदगी में हुआ प्रभाव या उसके एक तरफा प्रेमिका के जीवन की बदलती परिस्थितियाँ और उनका उस पर असर। यह चीजें मुख्य किरदार से आपका जुड़ाव करवाती है और आप ये जानने को उत्सुक हो जाते हैं कि आगे उसकी ज़िंदगी में क्या होगा। ऐसे में आपका उसके साथ रिश्ता केवल मामले को सुलझाने भर तक नहीं रह जाता है बल्कि उससे गहरा हो जाता है। वो आपका ऐसा दोस्त बन जाता है जिससे आप कुछ कुछ समय में मिलना चाहते हो और ये जानना चाहते हो कि उसकी ज़िंदगी में फिलहाल क्या चल रहा है। अजिंक्य शर्मा इस शृंखला के उपन्यास लगातार लिख रहे हैं और उम्मीद है वो ऐसे ही ऋषभ की ज़िंदगी के पहलू भी दर्शाते रहेंगे।
अजिंक्य शर्मा के उपन्यासों की एक खासियत उसमें मौजूद हास्य भी होता है। यह हास्य बीच बीच में आकर आपको मुस्कराने का मौका दे जाता है। प्रस्तुत उपन्यास में भी ऐसे कई प्रसंग बिखरे हुए हैं जो कि आपको हँसने पर मजबूर कर देते हैं। फिर चाहे वह ऋषभ और विनीत की आपसी तू तू मैं मैं हो या ऋषभ की निरंजन से तीखी तकरार या नॉटी शॉटी वाला प्रसंग। ये सभी मजेदार बन पड़े हैं और अगर आपको हास्य पसंद है तो ये जरूर आपको पसंद आएँगे।
किरदारों की बात करें तो ऋषभ सक्सेना एक आम सा युवा है। वह दिखने में अच्छा है लेकिन आम ज़िंदगी की परेशानियों से जूझ भी रहा है। उसे हीरो बनने का कोई शौक नहीं है लेकिन उसे ऐसे पचड़ों में पड़ता रहना पड़ता है। उसकी कुछ आकांक्षाएँ भी हैं जिन्हें वह पूरा करना चाहता है और उसमें असफल होते भी दिखता है। दोस्तों और घर वालों के साथ चुहलबाजी भी करता है। वह ऐसा हीरो नहीं है जो कि असफल नहीं हो सकता या गलत दिशा में नहीं जा सकता। इस कारण उससे पाठक का जुड़ाव सा हो जाता है। वह अपना दोस्त लगने लगता है जिससे आप बार बार मिलना चाहते हो।
ऋषभ के अतिरिक्त उसके दोस्त निरंजन और इंस्पेक्टर प्रधान का किरदार इधर प्रभावी है। दोस्त निरंजन के साथ उसका समीकरण रोचक है। वह कभी दोस्त की तरह उसकी टाँग खींचता है तो कई बार बड़े भाई की तरह उसे समझाइश भी देता है। इंस्पेक्टर प्रधान एक न्यायप्रिय व्यक्ति है जिसके साथ ऋषभ का रिश्ता पहले काफी औपचारिक था लेकिन इस उपन्यास में थोड़ा सा अनौपचारिक हुआ है। देखना है आगे चलकर इस रिश्ते में क्या होता है।
उपन्यास में मौजूद नॉटी शॉटी के किरदार भी मनोरंजक थे। उपन्यास में उनकी शुरुआत अपराधियों की तरह होती है लेकिन आगे जाकर कुछ उनमें बदलाव देखने को मिलते हैं। उम्मीद है आगे के उपन्यासों में भी वो आएँगे।
उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप ही थे। पैसे की ताकत किस तरह से कई लोगों के दिमाग खराब कर देती है वह इधर दिखता है। साथ ही यह भी दिखता है कि कई बार कैसे लोग अपने पैसे की चमक दमक के आगे उस शोषण को छुपा लेते हैं जो कि वह करते जाते हैं। उपन्यास में कंचन साहनी का किरदार भी है। वह एक खूबसूरत लड़की है जो अपनी खूबसूरती को कैश करना बखूबी जानती है और इसके लिए उसे कोई ग्लानि भी नहीं होती है। इस उपन्यास में ऋषभ और कंचन के बीच समीकरण भी बदलता दिखता है। कंचन और ऋषभ के बीच जो इस कथानक में हुआ है उसके परिणाम अगले उपन्यास में देखने को मिलेंगे तो बढ़िया रहेगा।
उपन्यास में वैसे कोई कमी तो नहीं है लेकिन संयोग यहाँ मामले को सुलझाने में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाता है। यह चीज कथानक को कमजोर कर देती है लेकिन अच्छी बात ये है कि चूँकि इस संयोग का पता उपन्यास के अंत में ही लगता है तो वह कमी तब तक उजागर नहीं होती है और इसलिए उपन्यास के मजे को उतना प्रभावित नहीं कर पाती है। पर इस संयोग के उजागर होने के बाद यह जरूर मन में आता है कि अगर संयोग के बजाए तहकीकात के जरिए नायक उस बात तक पहुँचा होता तो बेहतर होता।
उपन्यास में कुछ जगह प्रूफिंग की गलतियाँ भी हैं। जैसे आदर्श की पत्नी की नाम आराधना है लेकिन कई जगह उसे अंजना लिखा गया है। जबकि अंजना तनीषा की वो दोस्त थी जिसके फ्लैट में वह रह रही थी। एक जगह राणा की जगह मालेकर लिखा हुआ है। ऐसे ही कुछ जगह वर्तनी की गलतियाँ हैं जैसे एक जगह ‘उतना’ को ‘उतन’ लिख दिया गया है। एक शब्द ‘सोलनर’ का प्रयोग किया गया है लेकिन शायद वह गलत है। उसका कोई अर्थ मुझे न मिला। एक आध जगह जिस चीज को कोटेशन मार्क्स के भीतर होना चाहिए था वो आम वाक्य के तरह लिखा है जो कि संशय पैदा करता है। पर ऐसी गलतियाँ कुछ ही हैं। पृष्ठ 300 में एक हिस्सा है जो दो बार आ गया है और उसे हटाया जा सकता है। उम्मीद है लेखक ई संस्करण में इन गलतियों को सुधार देंगे ताकि पढ़ने का अनुभव और अच्छा हो जाए।
अंत में यही कहूँगा कि ऋषभ सक्सेना का यह दूसरा कारनामा आपका मनोरंजन करने में पूर्णतः सफल होता है। अगर रहस्यकथाएँ आपको पसंद आती हैं तो आपको इसे पढ़कर देखना चाहिए।
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