उपन्यास ख़त्म करने की तारीक :२५ फेब्रुअरी,२०१५
संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : ३०४
प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स
सीरीज : मुकेश माथुर #३
पहला वाक्य :
मंगला मदान लगभग चालीस साल की निहायत खूबसूरत औरत थी जो कि अपने लम्बे कद और छरहरे बदन की वजह से तीस की भी मुश्किल से लगती थी।
मंगला मदान एक अभिनेत्री और सोशलाइट थी। जब मंगला मदान की लाश पुलिस को बरामद मिली तो लाश को देख कर उनकी भी रूह कांप गयी। जिस वहशियाना तरीके से लाश की दुर्गत की गयी थी उससे ये काम इंसान का कम शैतान का ज्यादा लगता था। एक तो क़त्ल की दरिन्दिगी और दूसरा मंगला का दिल्ली के ऊँचे तपके से तालुकात होने से इस केस को ज्यादा तवज्जो मिलनी थी। इसलिए जब निखिल आनंद को इस केस के सिलसिले में पकड़ा गया तो सरकारी वकील ने उसे फाँसी के तकते पे चढ़ाने का पूरा मंसूबा बना लिया था।
अब उसकी मदद अगर कोई कर सकता था तो केवल मुकेश माथुर जो निखिल के चाचा के फर्म में कार्यरत था और निखिल का केस लड़ने वाला था।
क्या सचमुच निखिल आनंद बेक़सूर था? क्या मुकेश माथुर निखिल को छुड़ा पायेगा? क्या वो असली गुनाहगार को पकड़वाने में कामयाब हो पायेगा?
यह उपन्यास मुकेश माथुर सीरीज का तीसरा उपन्यास है। मुकेश माथुर एक नौसीखिया वकील है जो इस उपन्यास में अपना पहला क्रिमिनल केस लड़ता है। उपन्यास की शुरुआत से ही वो एक ऐसा व्यक्ति नज़र आता है जो अपनी बात को साफ़ साफ़ रखना पसंद करता है। इसके कई उदाहरण मिलते हैं जैसे कि शुरुआत में ही दिल्ली में इस बात को बता देता है कि ये ट्रायल उसका पहला है। वो अपनी कमजोरियों से भी वाकिफ है और उन्हें कभी छुपाता नहीं है। दूसरा उसे इस बात का भी यकीन है क्योंकि वो सच्चाई के लिए लड़ना पसंद करता है इसलिए उसकी वकालत ज्यादा समय तक नहीं चल पाएगी।
तीसरे, आनंद आनंद आनंद और एसोसिएट्स से अब मेरा कोई वास्ता नहीं। बड़े आनंद साहब के साथ मैंने जितना आनंद पाना था पा चुका। ये तंज कस सकते हैं कि ये फैसला करना मैं इसलिए अफ्फोर्ड कर सकता हूँ क्योंकि खामखाह चार करोड़ की रकम का वारिस बन गया हूँ, लेकिन ये बात नहीं है, नकुल बिहारी आनंद साहब। आपका जो चेहरा मैं जो आज देखा उसकी रू में मुझे चौपाटी पर भेल पूरी बेचना कबूल होता, आपका एसोसिएट बना रहना कबूल न होता।
उपन्यास में बाकि किरदार तो केस से जुड़े हुए थे और सभी उस हिसाब से फिट बैठते थे।
‘वहशी’ मुझे बहुत पसंद आया। ये एक लीगल थ्रिलर है। उपन्यास रहस्य और रोमांच से लबालब भरा हुआ है। उपन्यास को पढ़ने में मुझे कहीं भी बोरियत नहीं हुई और एक बार पढने बैठा तो रुकने के लिए काफी मेहनत करनी पढ़ी। कथानक इतना तेज गति से चलता है कि पाठक एक बार पढ़ना शुरू करे तो ख़त्म करके ही विराम लेगा।
अमेज़न
बहुत अच्छी समीक्षा विकास जी । 'वहशी' मुकेश माथुर सीरीज़ का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है और सुरेन्द्र मोहन पाठक के श्रेष्ठ उपन्यासों में सम्मिलित होता है । यह उपन्यास लीगल थ्रिलर के शौकीनों के साथ-साथ वकीलों और कानून के रखवालों को भी पढ़ना चाहिए । मैंने स्वयं भी इस उपन्यास की समीक्षा अंग्रेज़ी में लिखी है ।
जीतेन्द्र सर मैं mouthshut में आपकी समीक्षा पढता रहता हूँ। मैं खुद को समीक्षा लिखने के काबिल तो नहीं समझता बस जो विचार आते हैं उन्हें ही इधर उकेर देता हूँ। आपकी टिपण्णी मुझे प्रोत्साहित करेगी। शुक्रिया।