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उपन्यास मई २२,२०१६ से मई २४,२०१६ के बीच पढ़ा गया
उपन्यास मई २२,२०१६ से मई २४,२०१६ के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : १६०
प्रकाशक : हार्पर हिंदी
सीरीज : इमरान #1
पहला वाक्य:
सूट पहनने लेने के बाद इमरान आईने के सामने लचक-लचक कर टाई बाँधने की कोशिश कर रहा था।
वह इमारत तक़रीबन पाँच सालों से खाली थी। उसे केवल जुम्मे रात को खोला जाता था ताकि उसमे मौजूद एक शहीद की कब्र की साफ सफाई हो सके। फिर अचानक उस इमारत के आस पास लाशें मिलने लगी। क्या था इन लाशों का राज़? इनका इमारत से क्या रिश्ता था? केस पेचीदा था इसलिए इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट के सुप्रीटेंडेंट कैप्टेन फ़ैयाज़ ने इमारान की मदद लेने का निर्णय किया। क्या ये गुत्थी इमरान,जिसके खुद के वालिद उसे एक अहमक समझते हैं, सुलझा पायेगा। सवालों के जवाब तो आपको इस उपन्यास को पढ़कर ही पता चलेंगे।
इब्ने सफ़ी उर्दू जासूसी उपन्यासों में एक ऊँचा दर्जा रखते हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में कई बेहतरीन उपन्यास लिखे। ‘खौफ़नाक इमारत’ उनके द्वारा रची गयी इमरान सीरीज का पहला नावेल है। इसके इलावा उनकी दूसरी सीरीज जासूसी दुनिया है जिसमे इंस्पेक्टर फरीदी रहस्यों को सुलझाता है।
इमरान के विषय में बात करें तो उसने पी एच डी करी हुई है। वो तेज दिमाग शख्स है जो कि बेवकूफियाँ करता रहता है। ज्यादातर ये बेवकूफियाँ दूसरों को भ्रम में डालने के लिये होती हैं। वहीं इस उपन्यास का एक महत्वपूर्ण किरदार कैप्टेन फ़ैयाज़ है। वो एक कर्तव्यनिष्ट अफसर है लेकिन उसके अंदर उस सूझ बूझ की कमी है जिससे कि पेचीदा केस हल किये जा सकें। उसे इस बात का इल्म है और इसलिए अपने पेचीदा केस के लिए वो इमरान का सहारा लेता है। उपन्यास रहस्यमयी है और रोमांचक है। अकसर कुछ उपन्यासों में ऐसा होता है कि आप रहस्य को पहले ही भाँप जाते हैं लेकिन इस मामले में रहस्य के विषय में जब लेखक पर्दा उठाता है तभी आपके ऊपर भी वो उजागर होता है। उपन्यास की कहानी मुझे बहुत पसन्द आई। हाँ, इमरान का किरदार मुझे इतना पसंद नहीं आया। उपन्यास में जितना फ़ैयाज़ इमरान की अहमकाना हरकतों से चिढ़ता है उससे ज्यादा मुझे उससे चिढ होने लगी थी। शुरू शुरू में उसकी हरकतें मनोरंजक थी लेकिन बाद में बेवकूफी की हद ही पार कर दी थी। मुझे मालूम है कि उपन्यास में वो अपनी इन हरकतों को इसलिए इस्तेमाल करता है ताकि एक तो लोग उसे कम आँके और दूसरा कि वो क्या सोच रहा है उस पर पर्दा पड़ा रहे। लेकिन फिर पाठक के तौर पर कभी कभी उसका रवैया चिढ पैदा कर देता है। इसी चिढ की वजह से मैं उपन्यास का उतना आनंद नहीं ले पाया जितना कि लेना चाहता था। खैर, मैं जरूर इस सीरीज के अन्य उपन्यासों को पढूँगा।
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