रेटिंग : 3/5
उपन्यास 27 अगस्त 2016 को पढ़ा गया
उपन्यास 27 अगस्त 2016 को पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : ई-बुक
प्रकाशक : डेली हंट
प्रकाशक : डेली हंट
पहला वाक्य:
ऑफिस के दरवाजे पर लिखा था –
आवतारमानी एस्टेट एजेंसी
प्रॉपर्टी डीलर्स एंड कॉलोनाइजर्स
एक दुबला पतला चश्माधारी व्यक्ति एक क्षण को उस दरवाजे पर ठिठका और फिर उसे धकेल कर भीतर दाखिल हुआ।
ऑफिस के दरवाजे पर लिखा था –
आवतारमानी एस्टेट एजेंसी
प्रॉपर्टी डीलर्स एंड कॉलोनाइजर्स
एक दुबला पतला चश्माधारी व्यक्ति एक क्षण को उस दरवाजे पर ठिठका और फिर उसे धकेल कर भीतर दाखिल हुआ।
गोपाल यशवन्तराय आवतारमानी इलेक्ट्रा कारपोरेशन का चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हुआ करता था।
दिवाली के एक रात वो जब घर से निकला तो कभी वापस नहीं लौटा। उसके बेटे मोती आवतारमानी, ने उसे जाते हुए देखा था और ये भी देखा था कि वो उस वक्त अपना एक विशेष जूता पहने हुए था। मोती जानता था कि वो जूता कोई ऐसा वैसा जूता नहीं था। वो एक करोड़ का जूता था और उसके पिता उसे तभी पहनते थे जब उनको जान या माल का खतरा होता था। गोपाल के इलावा इस जूते के विषय में केवल मोती और गोपाल का पार्टनर सुदर्शन चक्रवर्ती उर्फ़ चक्की जानता था।
जब वो गायब हुआ था तब उसका बेटा मोती आवतारमानी दस साल का था। और गायब होने के एक साल बाद से मोती के नाम दो हज़ार रुपये का मनी आर्डर आने लगा था। सत्रह साल से सिलसिला बदस्तूर जारी था। मोती की माने तो ये पैसे उसे उसके पिता देते थे और इस एक मनी आर्डर के सिवा उन्होंने उससे मिलने की कभी कोशिश नहीं की थी।
इस कारण मोती कभी अपने धोखाबाज पिता की छाया से बाहर नहीं निकल पाया था। उसे व्यावसायिक नुक्सान भी उठाना पड़ रहा था क्योंकि कोई एक धोखेबाज के बेटे के व्यवसाय में पैसे लगाने को तैयार नहीं था।
मोती अपने ऊपर लगे इस दाग को धोना चाहता था। वो ऐसा कैसे करेगा?
वहीं चक्की था जिसे ऐसा लगता था कि गोपाल सत्रह साल पहले ही किसी साजिश का शिकार हो गया था। और उसके लाश के साथ उसका जूता भी दफ़न हो चुका था। वो गोपाल कि लाश के तलाश में था और इसके लिए उसे मोती कि जरूरत थी। क्या मोती मदद करने को तैयार हुआ? क्या सचमुच गोपाल मर चुका था? अगर ऐसा था तो दो हज़ार रूपये के मनी आर्डर, जिसमे गोपाल के हस्ताक्षर होते थे, के पीछे क्या राज़ था?
गोपाल ने गायब होने से पहले एक गैंगस्टर सकलानी से तीस लाख रूपये लिए थे। सकलानी इस बात को भूला नहीं था। अब उसे भी चक्की के प्लान की खबर लग गयी थी और वो किसी भी हालत में इस जूते को पाने चाहता था फिर चाहे इसके लिए उसे मोती या उसके चाहने वाले की जान ही क्यों नहीं लेनी पड़े। मोती सकलानी जैसे गैंगस्टर का सामना कैसे कर पाया ?
सवाल तो कई है और जवाब केवल उपन्यास पढ़कर ही मिलने वाले हैं। आपको पता है आपको क्या करना है।
एक करोड़ का जूता सुरेंद्र मोहन पाठक द्वारा लिखा गया एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास मुझे काफी पसंद आया। उपन्यास में मिस्ट्री और थ्रिल दोनों है। उपन्यास मैंने एक ही दिन में खत्म कर लिया। ऐसा अक्सर बहुत कम होता है और यही उपन्यास के विषय में काफी कुछ कहता है।
उपन्यासों के किरदारों की बात करूँ तो मोती इसका नायक जरूर है लेकिन वो एक साधारण इंसान है। वो कई गलतियाँ करता है, पिटता भी है जो उसे काफी जीवंत बनाता है। इसलिए आप उससे एक जुड़ाव महसूस करते हैं। पाठक साहब के किरदारों की खासियत यही है कि वो आपके मेरे जैसे इंसान है। वो अपनी गलितयों से सीखते हैं और कोई सुपर हीरो नहीं है। उसके इलावा बाकी के किरदार भी असली ज़िन्दगी के इर्द गिर्द ही बुने गये हैं।
उपन्यास कि कहानी वर्तमान से शुरू होती है जिसमे दो हजार के मनी आर्डर का रहस्य से पाठक वाकिफ होता है। उसके बाद कहानी फ़्लैश बेक में चली जाती है। ये फ़्लैश बेक काफी ज्यादा था जिसने मूल कहानी से थोडा तवज्जो कम कर दी थी। इससे कहानी कि रफ़्तार मुझे थोड़ी कम होती प्रतीत हुई। फ़्लैश बेक टुकड़ों में होता तो मेरे हिसाब से ज्यादा सही रहता।
खैर,फ़्लैश बैक के बाद कहानी फुल रफ़्तार में थी और जिसे पढ़कर काफी रोमांच आया। ये एक थ्रिलर होने के साथ साथ एक तगड़ी मिस्ट्री भी है। सत्रह साल पहले क्या हुआ था इसी गुत्थी को सुलझाने में सारे किरदार लगे रहते हैं। इसमें उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस कारण से उपन्यास काफी मनोरंजक हो जाता है।
मुझे पूरा यकीन है जिस तरह इसने मेरा मनोरंजन किया उस तरह आपका भी जरूर करेगी।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
'एक करोड़ का जूता' वास्तव में एक दिलचस्प कथा है। कहानी आदि से अंत तक पाठक को बांधे रखती है।
अच्छी समीक्षा, धन्यवाद।
जी सही कहा आपने। उपन्यास वाकई पठनीय है। ब्लॉग पर प्रतिक्रिया देने के लिए शुक्रिया।