इच्छाधारी अम्मा – टाइगर

रेटिंग : 2.5/5
उपन्यास 19 अगस्त 2017  से अगस्त 20,2017 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण :

फॉर्मेट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 271 | प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स

इच्छाधारी अम्मा

पहला वाक्य :
“सरदार मग्घर सिंह !” जेलर अपने सामने खड़े लम्बे चौड़े सिख नौजवान से बोला-“तुम्हारी सज़ा खत्म हुई।”


जब मग्घर सिंह को अपनी निर्धारित सज़ा के समय से पूर्व आज़ाद कर दिया गया तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसने निर्णय ले लिया था कि वो बंतों से मिलेगा और अपने प्यार को शादी के अंजाम तक पहुँचायेगा। इसके इलावा उसके मन में होराबाई नाम की उस बुढ़िया को देखने की भी ललक थी जिसके विषय में मग्घर सिंह को बंतो ने बताया था। होरा बाई का कहना था कि सौ साल की होते ही उसके अन्दर इच्छानुसार रूप बदलने की ताकत आ जायेगी। वैसे तो बात हास्यास्पद थी लेकिन कई लोगों को विश्वास था कि होराबाई सही कह रही थी।

आखिर सच क्या था ? क्या होरा बाई के अन्दर सचमुच इच्छाधारी शक्तियाँ आने वाली थी या वो कोई धोखे बाज थी ? क्या मग्घर सिंह उससे मिला? मग्घर सिंह की उसके साथ मुलाकात कैसे रही?

लेकिन जेल से निकलते ही उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। एक व्यक्ति ने बंतों का अपहरण कर दिया था। और वो चाहता था कि मग्घर सिंह उसके लिए काम करे। 

कौन था ये व्यक्ति ? मग्घर सिंह से क्या काम करवाना चाहता था वो ? क्या बंतो को छुडाने में मग्घर सिंह सफल रहा?


उपन्यास के कुछ मुख्य किरदार:
सरदार मग्घरसिंह – एक चोर और मुख्य किरदार
बंतों – मग्घरसिंह की प्रेमिका
बांदरू और खैरातीलाल – मग्घरसिंह के दोस्त। बांदरू चाकू चलाने में उस्ताद था तो खैरातीलाल एक उम्दा ताला तोड़ था।
आचार्य – वो व्यक्ति जिसने बंतो को अपने पास रखा था ताकि वो मग्घरसिंह से अपना काम निकलवा सके
अपर्णा – आचार्य की सेक्रेटरी
बांकेलाल – आचार्य का ड्राईवर
त्रिलोक सिंह – मग्घरसिंह का दोस्त
सुच्चासिंह – त्रिलोक का भाई। बंतो सुच्चा की ही साली लगती थी।
शैफाली – मग्घर सिंह की दोस्त। पेशे से वो एक कॉल गर्ल थी।
होराबाई – बंतो के पड़ोस में रहने वाली एक बुढ़िया। उसका मानना था कि सौ साल की होने पर उसके अन्दर इच्छा स्वरूप रूप बदलने की शक्ति आ जाएगी।
इंस्पेक्टर दयाल – एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर जिसके मग्घरसिंह के साथ अच्छे रिश्ते थे
चटियाल सिंह चड्ढा – इंस्पेक्टर दयाल सिंह के थाणे का मुंशी। ये एक भ्रष्ट ऑफिसर था।
पप्पू – उत्तम नगर टर्मिनल में चाय की दुकान में काम करने वाला लड़का।
माछीराम – एक ताला तोड़ जिसका बंदोबस्त शैफाली ने किया था
छोटे लाल और मोटे लाल – मिक्की हाउस के सामने खड़े गार्ड
कोमल – शैफाली की दोस्त जो उसी की तरह कॉल गर्ल थी
रामप्रकाश शर्मा – मिक्की हाउस का भूतपूर्व चीफ सेल्समैन

‘इच्छाधारी अम्मा’ के रूप में मैंने टाइगर के द्वारा लिखे उपन्यासों को पढने का खाता खोल ही लिया है। इस उपन्यास की बात करें तो इसकी मुख्य कहानी मग्घर सिंह के द्वारा मजबूरीवश किसी के लिए डकैती डालने की है। ये डकैती क्यों डल रही है और किस चीज की डल रही है वो उपन्यास के शुरूआती पन्नों में ही साफ हो जाता है। लेकिन डकैती डालने की योजना बनाना और उसको सफलतापूर्वक अंजाम देना अलग अलग बातें हैं। उपन्यास का मुख्य कथानक इसी में बीतता है। कई घटनाक्रम होते हैं जो कि पाठक को उपन्यास पढ़ते जाने पर विवश कर देते हैं।

इसके इलावा इस कथानक के साथ साथ होरा बाई की कहानी भी चलती रहती है। वो इच्छाधारी औरत बनने वाली है और उस दिशा में क्या होता रहता है ये भी पाठक को यदा कदा पता चलता रहता है।

उपन्यास मुझे औसत से अच्छा लगा। उपन्यास में कुछ बातें थी जो मुझे थोड़ी खली। पहले उन्हें देख लेते हैं।

इसमें कुछ प्रसंग थे जिनसे लगा कि उपन्यास को अनावश्यक रूप से खींचा गया है। शायद पृष्ठों को बढ़ाने की जरूरत रही हो। कुछ प्रसंगों को हटाया जा सकता था। जैसे कोमल से पूछताछ करने आया इंस्पेक्टर उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध भी बनाता दिखाया गया है। उसे रखने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसके इलावा उपन्यास के बीच में मग्घर सिंह बीमार भी गिरता है। इसी के कारण हमे उसके घर और पड़ोसियों से सम्बन्ध का पता चलता है जिसकी भी कोई आवश्यकता नहीं थी। ऐसे ही कुछ अन्य प्रसंग होंगे जिन्हें कम किया जा सकता था। ऐसा होता तो कहानी में थोड़ा कसाव बनता। रोमांचक उपन्यासों के लिए ये कसाव जरूरी होता है क्योंकि जितनी कसी कहानी होगी वो उतनी ही तेज रफ़्तार लगेगी। अनावश्यक चीजें इस रफ़्तार को धीमा कर देती हैं जिससे पाठक के बोर होने की संभावना बढ़ जाती है।

उपन्यास का शीर्षक इच्छाधारी अम्मा था लेकिन पूरे उपन्यास में कथानक का ये हिस्सा इतना महत्वपूर्ण नहीं लगा। ऐसा लगा कि ये कहानी का गौण हिस्सा था जिसे खाली एक शॉक फैक्टर के लिए इस्तेमाल किया गया है। हाँ, कहानी के अंत में इसका राज़ फाश होता है कि ये क्या चीज थी? लेकिन फिर वो शायद इसीलिए रखा गया ताकि शीर्षक को जस्टिफाई किया जा सके। इसके बिना भी उपन्यास रखा जाता तो भी मुझे नहीं लगता कि कुछ ज्यादा फर्क उपन्यास पर पड़ता। जिस तरह से इस हिस्से को शुरुआत में हाई लाइट किया था उससे मेरी कुछ उमीदें बंध गयी थी जो कि पूरी नहीं हुई। इससे पाठक खुद को थोड़ा ठगा सा महसूस करता है।

मग्घर सिंह जब चोरी करता है तो उसके पास एक चीज रहती है। साधारण रूप से चोरी करने के बाद अगर मैं होता तो पहले इस माल को किसी सुरक्षित जगह रखता और उसके बाद ही आगे की कार्यवाही करता। लेकिन मग्घर सिंह जो कि एक पेशेवर चोर है ये करने की जहमत नहीं उठाता। वो भी तब जब उसे पता था कि पुलिस को उसके विषय में पता था कि चोरी उसने करी है। ये गलती उसे बाद में भारी पड़ती है लेकिन मुझे ये पची नहीं। लेकिन फिर इन्सान क्या न करे वो कम है। शातिर चोर भी कई बार बेवकूफी कर देते हैं तो मैंने  इस चीज को ज्यादा महत्व नहीं दिया। हाँ, खटका तो इधर लिख दिया।

आखिर में कुछ नामों  के साथ थोड़ी गड़बड़ हुई है। एक जगह होटल राजदूत की जगह होटल नटराज(पृष्ठ 249) लिखा है और एक जगह अनीता की जगह कोमल(पृष्ठ 256) लिखा गया है।

ऊपर लिखी बातों को छोड़कर उपन्यास मुझे पसंद आया। इसमें काफी मोड़ थे जिन्होंने मेरी रूचि अंत तक बनाई रखी। जेलर और मग्घर सिंह के बीच का संवाद और मिक्की हाउस में माछीराम के संवादों ने जहाँ गुदगुदाया वहीं मग्घर सिंह के बन्तों के प्रति प्रेम ने उससे एक भावनात्मक लगाव जोड़ दिया था। उपन्यास मैंने दो दिन में पढ़ लिया था तो इस बात से भी उपन्यास के विषय में अंदाजा लग सकता है कि उपन्यास काफी पठनीय है। हाँ, ऊपर लिखी बातों में ध्यान दिया होता तो शायद उपन्यास को ढाई से साढ़े तीन स्टार देता।

किरदारों की बात करें तो मग्घर सिंह का मजाकिया अंदाज मुझे पसंद आया। माछीराम भी बहुत मजाकिया किरदार लगा। उसके डायलॉगस ने मुझे काफी गुदगुदाया। शैफाली और कोमल के किरदारों ने मेरे दिल में जगह बनाई। शैफाली एक अच्छी लड़की है। उसके साथ आगे क्या हुआ ये जानने की मेरी इच्छा है। अगर हो सके तो लेखक एक छोटी सी कहानी में इसे दर्शा सकते हैं। मेरी उम्मीद थी कि उसे ख़ुशी और उसकी चाहत मिले। इंस्पेक्टर दयाल एक अच्छे लेकिन सिस्टम से हारे पुलिस वाले के तौर पर बखूबी जँचा। हम अक्सर पुलिस वालों को सीधे ही बैमान घोषित कर देते हैं लेकिन हम ये नहीं सोचते कि हम अगर उनकी जगह होते तो क्या करते? दयाल ऐसा ही पुलिस वाला है जो लड़ता है लेकिन उसे पता है कि वो ऐसे राक्षस से लड़ रहा है जिसे हरा पाना किसी के बूते की बात नहीं है। ऐसे में केवल इतना किया जा सकता है कि  जहाँ तक हो सके आदमी खुद सही रहे और जितना हो सके सही करने की कोशिश करे। दयाल यही करता है। बाकी के किरदार उपन्यास के हिसाब से सही थे।

बहरहाल उपन्यास के विषय में एक चीज और है जो मुझे खटकी थी। ये कहानी की बात नहीं थी इसलिए इसके विषय में आखिरी में लिख रहा हूँ। उपन्यास के कवर पृष्ठ पर लिखा है कि ये शेषनाग-शामली श्रृंखला का उपन्यास है लेकिन उपन्यास के कथानक में न शेषनाग है और न शामली। ये क्या गड़बड़ घोटाला है ? इस विषय में कोई रौशनी डाल सके तो बढ़िया होगा। मैंने कई देर तो इस विषय में सोचते हुए सर खुजाया लेकिन मुझे कुछ समझ नहीं आया।

उपन्यास रोचक है जिसे एक दफा पढ़ा जा सकता है। हाँ, शीर्षक  और आवरण के बाद वाले पृष्ठ को पढ़कर मन में अपने हिसाब से कोई अपेक्षा नहीं रखियेगा।क्योंकि ज्यादा संभावना है आप किसी और दिशा में ही सोचेंगे। मैंने अपेक्षा रखी थी इसलिए उपन्यास का पूरी तरह से मज़ा नहीं ले पाया। बिना अपेक्षा के पढेंगे तो उपन्यास में ज्यादा मज़ा आएगा।

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपनी राय कमेंट के माध्यम से जरूर बताइयेगा। अगर आपको उपन्यास पढना है तो निम्न लिंक से इसे मंगवा सकते हैं।
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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “इच्छाधारी अम्मा – टाइगर”

  1. यह उपन्यास बहुत समय पहले पढा था‌। मुझे बहुत रोचक लगा। उपन्यास में कुछ कमियां थी। होरा बाई और मग्घर सिंह के कहानी जुदा सी भी लगती है।
    इस उपन्यास में मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया इस के क्लाइमैक्स ने, बहुत ही भावुक अंत है।
    एक अच्छी समीक्षा के लिए धन्यवाद।

    1. जी मैं खरीद कर ही उपन्यास पढता हूँ। पीडीएफ में नहीं पढ़ता हूँ। पीडीएफ के चक्कर में ही तो उपन्यास आने बंद हुए हैं। सब पी डी एफ में  पढ़ेंगे तो लेखक को पारिश्रमिक कहाँ से मिलेगा और जब पारिश्रमिक नहीं मिलेगा तो वो लिखेगा क्यों? कई लेखकों ने इसलिए लिखना बंद कर दिया है।

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