मुर्दा नम्बर 13 – रीमा भारती

रेटिंग : 2.5/5

उपन्यास 14 अक्टूबर 2017 से  15 अक्टूबर 2017,के बीच पढ़ा गया 
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक 
पृष्ठ संख्या : 285
प्रकाशक : रवि पॉकेट बुक्स 

मुर्दा नम्बर 13

पहला वाक्य:
जब मैं अपने बंगले पर पहुँची तो उस वक्त दोपहर ढल चुकी थी। 
क्षितिज सक्सेना एक व्यापारी था जिसे अपने बिज़नस पार्टनर अमन खन्ना की हत्या के जुर्म में सजा हो चुकी थी। कहा जाता था कि अमन ने अपने पार्टनर क्षितिज को डेढ़ सौ करोड़ का चूना लगाया था जिसके चलते दोनों के बीच अदावत थी। क्षितिज की माने तो ये सच था कि अमन ने उसके साथ धोखा किया था लेकिन वो इस बात को भूल गया था क्योंकि ये रकम उसके लिए काफी छोटी थी।  वो बेगुनाह था जिसे एक षड्यंत्र के तहत फँसाया गया था। उसके वकील शांतनु गोयल को उसकी बात पर पूरा विश्वास था इसलिए उसने रीमा से मदद की गुहार मांगी थी। 
रीमा जो कि जासूस थी इस बात से हैरान तो हुई थी लेकिन उसे सबसे ज्यादा हैरानी इस बात की हुई थी कि शांतनु आईएससी के चीफ डायरेक्टर खुराना की सिफारिश लेकर आया था। अब उसका ना करने का सवाल ही नहीं था। 
आखिर क्यों आईएससी का चीफ अपने सबसे बेहतरीन एसेट को एक मामूली क़त्ल के सिलसिले में उलझाना चाहता था? क्या वाकई क्षितिज बेगुनाह था? और उसके खिलाफ साजिश हुई थी तो इसके पीछे कौन था?
जब इसी केस की शुरुआत में ही रीमा पे जानलेवा हमला हुआ तो इन सवालों का महत्व और बढ़ गया। आखिर एक मामूली केस के लिए कौन जान पे हमला करवाता है। ऊपर से उन अनजान हमलावरों को उसके जासूस होने की खबर थी। 
किसने भेजे थे वो हमलावर? क्या रीमा उनके हमले से बच पायी? क्या वो साजिश की परतों को खरोच कर सच्चाई उजागर कर पायी? 
ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब आपको इस उपन्यास को पढने के पश्चात ही मालूम होंगे। तो देर किस बात की है। आपको पता है आपको क्या करना है। 
उपन्यास के मुख्य किरदार
रीमा भारती – इंडियन सीक्रेट कोर(आई एस सी) की नम्बर 1 जासूस
खुराना – आई एस सी का चीफ डायरेक्टर
क्षितिज सक्सेना-एक व्यपारी जिसे कत्ल के सिलसिले में सजा हुई थी और जिसका केस रीमा ने लिया था
अमन खन्ना – क्षितिज का बिजनेस पार्टनर जिसके मर्डर का आरोप क्षितिज पे था
शुशांत गोयल – क्षितिज का वकील
तनीषा जेटली – क्षितिज वर्मा की सेक्रेटरी
इंस्पेक्टर हरपाल सिंह- इंस्पेक्टर जिसने क्षितिज को पकड़ा था और अदालत में गवाही दी थी कि उसने क्षितिज को अमन का कत्ल करते देखा था
सुनीत वर्मा- क्षितिज का मैनेजर और एक और चश्मदीद गवाह जिसने क्षितिज को खून करते देखा था
मदन पाल – एक गुंडा जो रीमा का पीछा तब से कर रहा था जब से वो सुनीत वर्मा के घर से निकली थी

रितु खन्ना – अमन की पत्नी
निखिल बेदी- एक युवक जिससे तनीषा पोर्ट लुईस में मिली
मेजर होरी राम – पोर्ट लुईस का एक उच्चाधिकारी
ईशा – एक मॉडल और तनीषा की दोस्त
कैटरीना – एक मॉडल जो तनीषा के साथ होटल लॉन्ग साईट में रुकी थी और उसकी दोस्त थी
पूरब भंसाली- एक बॉलीवुड फिल्म डायरेक्टर जिसकी पार्टी में आने का तनीषा को निमन्त्रण मिला था
जैन – रीमा को पूरब भंसाली की पार्टी में मिलने वाला व्यक्ति। वो ही उसे पूरब से मिलवाता है।
टोमोलटर – वह व्यक्ति जिसके साथ तनीषा भंसाली की पार्टी से निकली थी
ओरिस- वह व्यक्ति जिसके पास तनीषा टोमोलटर के बाद गयी थी
सोहेल खान – वह युवक जिसे निखिल वाले हवालात कक्ष में रखा गया था
बलदेव ठाकुर – पुलिस स्टेशन में मौजूद एक हवलदार
पाशा – एक अपराधी जो कि मेजर होरीराम की बेटी के अपहरण में शामिल था
विशम्भर नाथ – एक सम्गलर
बादशाह – विशम्भर का एक साथी
शेर अली – वो व्यक्ति जिसने विशम्भर नाथ के अस्सी करोड़ रूपये गबन कर लिए थे
अमजद अली – शेर अली का छोटा भाई
दक्ष – रीमा भारती का असिस्टेंट जिसे वो जापान से मिली थी और फिर उसे अपने पास रख लिया था
प्रशांत – एक युवक जो रीमा को मॉरिशस से न्यू यॉर्क की फ्लाइट पे मिला था
डॉक्टर सेंट जोसफ – एक प्लास्टिक सर्जन
डॉक्टर सेमसन और डॉक्टर जोसफ डीसूजा – डॉक्टर सैंट जोसफ के सहकर्मचारी जो उसके नीचे काम करते थे
एरिन – एक मेडिकल उपकरण बनाने वाला जिसके पास डॉक्टर सेमसन कोई उपकरण लेने गया था

संकरी – विशम्भर नाथ का साथी जो न्यू यॉर्क में रहता था और जिसके पास तनीषा को भेजा गया था
किरण बेदी – क्षितिज की एक दोस्त
गरिमा जिंदल – क्षितिज की कम्पनी हिमानी में काम करने वाली कर्मचारी

रीमा भारती के पिछले दो उपन्यासों ने मुझे निराश किया था। यही कारण भी था कि मेरे पास रीमा भारती के दूसरे उपन्यास होने के बावजूद मैंने उनकी तरफ नज़र उठाकर भी नहीं देखा था। लेकिन अब छः महीने बाद (रीमा भारती का पिछला उपन्यास कली हूँ गुलाब की अप्रैल में जो पढ़ा था) मैंने सोचा कि बाकी मौजूद उपन्यासों की तरफ देखना चाहिए। मैं नया तो खरीद नहीं रहा था। जो है वो ही खत्म कर रहा था तो शनिवार को मैंने रीमा भारती के उपन्यास के नाम करने की सोची। मेरी इससे अपेक्षा ज्यादा थी भी नहीं। लेकिन उपन्यास ने मुझे सचमुच खुश कर दिया। ऐसा नहीं है कि उपन्यास में कमियाँ नही है। वो तो हैं, हर उपन्यास में होती है लेकिन फिर भी बाकी रीमा भारती के उपन्यासों के मुकाबले ये काफी अच्छा बन पड़ा है।

लेकिन पहले उपन्यास की कमियों पर आते हैं।

उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो सबसे बड़ी कमी उपन्यास का अंत है। उपन्यास का कथानक २१२ पृष्ठों तक तेज गति के साथ चलता है। रीमा जिसकी तलाश में पूरे उपन्यास में इधर से उधर घूमती रहती है उसे पा लेती है। फिर बारी आती है रहस्योद्घाटन की। उपन्यास में दो रहस्य हैं जिनको दो अलग अलग पात्र खोलते हैं । ये रहस्योद्घाटन करते वक्त दोनों बार जो कहानियाँ बताई जाती हैं उन्हें जरूरत से ज्यादा खींचा गया है। पाठक कुछ ही पृष्ठ पढ़कर जान जाता है कि पात्र क्या कहना चाहता है लेकिन फिर भी इसे ७३ पन्नों तक खींचा गया है। ये बात मुझे सही नहीं लगी।  ऐसा लगा कि लेखक को निर्देश दिये थे कि इतने पृष्ठों का कथानक बनना चाहिए और वो उस हिसाब से लिख रहा था। अगर प्रकाशक मेरी राय माने तो उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। कहानी को खींचने के बजाय उसकी गति को बनाये रखते हुए उसे अंत होने देना चाहिए। जो विवरण ७० पृष्ठों से ऊपर खिंचा वो मुश्किल से 20 से 30 पृष्टों में निपट सकता था। और इससे उपन्यास का कथानक कसा हुआ रहता। अगर पुस्तक को एक पृष्ठ संख्या तक पहुँचाना ही था तो इस कथानक को खींचने की जगह एक छोटी लघुकथा को उपन्यास में जोड़ा जा सकता था। ऐसे में पाठक भी खुश रहता और उपन्यास भी अच्छा बना रहता।

उपन्यास की दूसरी कमी है कि इसमें कई प्रश्न ऐसे हैं जिनका उत्तर उपन्यास ख़त्म करने के बाद भी पाठक को नहीं मिलता। उदारहण के लिए:


वो हमलावर कौन थे जिन्होंने शुरुआत में रीमा पर हमला करवाया था? उन्हें रीमा और शांतनु के विषय में कैसे पता लगा था? उस समय तो रीमा उन लोगों से मिली भी नही थी जिनपर क्षितिज को फंसवाने का शक उसे बाद में हुआ था।  फिर आईएससी के चीफ ने रीमा को इस केस पे क्यों लगाया था? इसके पीछे का कारण भी अंत तक सामने नहीं आया।


जैन ने रीमा पे हमला क्यों किया? ओरिस के यहाँ उसपे हमला करने वाली लड़की कौन थी? ओरिस का इस साजिश से क्या लेना देना था?

तनीषा ने खुद को गोली मारी थी। ये सब रीमा के सामने ही हुआ और उसने तनीषा की बॉडी चेक भी की थी। लेकिन फिर भी तनीषा बाद में जिंदा दिखाई गयी।  तो ऐसे में रीमा को बेवकूफ बनाने में वो सफल कैसे हुई? क्या गोली नकली थी? क्या रीमा ने लाश का ठीक से परीक्षण नहीं किया था?  इसके विषय में भी उपन्यास में कहीं कुछ पता नहीं चलता।

उपन्यास में कई घटनाएं  ऐसी थी जो मुझे पचाने में दिक्कत हुई। लेखिका इनपर थोड़ा सा काम करके इन्हें सुधार सकती थीं। अभी तो ऐसा लग रहा था कि लेखिका खुद अलसा गयी थी और जल्द जल्द उपन्यास खत्म करना चाहती थी।  उदारहण के लिए:

उपन्यास में एक दृश्य है जिसमे रीमा के बदन में बम बंधा है। उसे फटने में आठ सेकंड रह जाते हैं तभी वो एक गाड़ी को देखती है और उसे आवाज देती है। गाड़ी आगे न निकल जाती है और फिर वापस रिवर्स में आती है।फिर उससे आदमी निकलता है और रीमा के पास पहुँचता है। इस पूरे काम चार सेकंड लगते हैं जो कि किसी भी तरह मुमकिन नहीं है। यहाँ पे लेखक ने अति कर दी है। फिर वो आदमी बेल्ट खोलता है और उसे फेंकता है और ये काम वो तीन सेकंड में करता है। अब बम वाली बेल्ट खोलना इतना आसान तो होगा नहीं। ये सब लेखिका को सोचना चाहिए था।

बम से आज़ाद होने के बाद रीमा भारती खाली एक चाकू के साथ दुश्मन की इमारत में घुसती है और दुश्मनों को हराकर जब बाहर निकलती है तो एक टाइम बम उस इमारत में फिट कर देती है। ये टाइमबम उसे कैसे मिला? इसका जिक्र कहीं नहीं था। जब वो इमारत में घुसी थी तो खुद एक टाइम बम से बचकर आई थी और इमारत में एक टाइम बम उसे मिला नहीं क्योंकि वो लड़ने में व्यस्त थी।

 कहानी के अंत में एक डायरी बहुत महत्वपूर्ण है। पात्र को डायरी नहीं मिलती तो कहानी अटक सी जाती।  लेकिन वो डायरी एक पात्र को तब मिलती है जब उस डायरी की मालकिन रेस्टोरेंट में एक व्यक्ति से टकराती है और उसका पर्स खुल जाता है। मेरे मन में सवाल ये है कि कौन सी महिला अपनी व्यक्तिगत डायरी अपने पर्स में लेकर घूमती है। फिर पर्स में इतनी चैन होती हैं। कौन सी महिला पर्स की चैन खुली रखती है। ये बात कुछ हजम नहीं होती।

इसके इलावा मॉरिशस में रीमा जितने लोगों से मिलती है उनके नाम सारे भारतीय हैं। मॉरिशस में भारतीय मूल के लोग हैं ये तो मुझे पता है लेकिन ये बात यकीन करने लायक नहीं कि पुलिस स्टेशन में भी उससे वो ही टकराए थे। थोड़ा नाम उधर के दूसरे लोगों के होते तो बढ़िया रहता।

इन तीनो बातों पर लेखिका को अधिक काम करना चाहिए था।

उपन्यास की कमियों के बाद उसकी खूबी पर भी बात करना जरूरी है। उपन्यास में रहस्य और रोमांच दोनों हैं। २०० पृष्ठों तक तो एक्शन और थ्रिल उपन्यास में बरकरार रहता है। कहानी में कई घुमाव भी आते हैं जो पाठक को आगे बढ़ते जाने के लिए मजबूर कर देते हैं। बीच में थोड़ी थोड़ी देर के लिए मुझे लगा था कि उपन्यास को खींचा गया है लेकिन वो हिस्सा भी इतना बड़ा नहीं था कि पाठक उपन्यास को बोरियत के मारे किनारे रख दे। वो हिस्से भी एक्शन सीन्स के बीच में आते हैं इसलिए पठनीय है और कहानी के अनुसार हैं।

उपन्यास की  भाषा साधारण बोलचाल की भाषा है। एक आध जगह  लेखिका ने अच्छी कोशिश की है।


शहर का सर्द मौसम… रेशमी हवाओं के मदमस्त झोंके.. खूबसूरती के आलम में सिमटा हुआ वो वक्त घूघंट उठाते हुए शायद मुझे अपना दीदार कराना चाहता था।(पृष्ठ ७५) 

मोहब्बत जब तक बेताब न कर दे, तब तक काबू में कहाँ आती है! उसके लिए तड़पना भी जरूरी था। बेचैनी न हो तो चैन मिलने का एहसास नहीं होता। (पृष्ठ २४८)

किरदार कहानी के अनुरूप ठीक ठाक हैं। दक्ष नाम का एक किरदार है जो रीमा का असिस्टेंट है। उसके विषय में बस इतना जिक्र है कि वो रीमा को जापान में मिला था। प्रकाशक ऐसे में अगर फुटनोट में बता देता कि ये बात किस नावेल में घटित हुई थी तो बढ़िया रहता।

रीमा भारती अपने उपन्यासों में मौजूद सेक्स के चित्रण के लिए कुख्यात है। किसी से भी कहो रीमा भारती का उपन्यास पढ़ रहा हूँ तो उसके चेहरे पे एक कुटिल सी मुस्कान आ जाती है जो कहती प्रतीत होती है कि बच्चू मुझे पता है तुम किस लिए पढ़ रहे हो। व्यक्तिगत तौर पर मुझे सेक्स और उसके विवरण से कभी परेशानी नहीं हुई है। सेक्स एक प्राकृतिक चीज है जो जीवन का हिस्सा है। उपन्यास में उसका आना कोई बुरी बात भी नहीं। और फिर सेक्स बिकता है ये शाश्वत सत्य है।  लेकिन अगर वो कहानी के अनुसार हो तो ठीक रहता है। अगर उपन्यास में कहानी कमजोर है तो सेक्स भी उसे बचा नही सकता। तो वो लोग जो  खाली सेक्स सीन्स के लिए रीमा भारती के उपन्यास को पढ़ते हैं तो उनको इस उपन्यास निराशा हासिल हो सकती है।

हाँ, उपन्यास पढ़ते वक्त मैंने सोचा कि देखूँ इस उपन्यास में कितने लोगों को रीमा मौत के घाट उतारती है। ऐसे ही मजे के लिए ये प्रयोग किया। कई जगह लोगों की गिनती की जगह अनेक लिखा था। सबसे ऊंची गिनती चार लिखी थी तो मैंने जिधर अनेक लिखा था उधर मान लिया कि छः लोग होंगे। ऐसे ही अनेक तीन चार बार लिखा था। तो आप जानना चाहते है कि रीमा ने कितनों को मौत के घाट उतारा। तो साहेबान ये गिनती मेरे अनुसार : ४१ आई। यानी पूरे उपन्यास में रीमा द्वारा ४१ मौते की गयी। खैर, मेरे दिमाग में ऐसी खुराफाते आती रहती हैं। और अपना ब्लॉग होने का फायदा ये होता है कि ऐसी खुराफातों को जगह दे सकते हैं। क्यों है न? 😉😜😜😜😜

अंत में इतना ही कहूँगा कि उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है। उपन्यास में थ्रिल एक्शन सब है। अगर आपने उपन्यास पढ़ा है तो इसके विषय में अपनी राय देना नहीं भूलियेगा। 


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “मुर्दा नम्बर 13 – रीमा भारती”

  1. रीमा भारती के प्रारंभिक उपन्यास खूब पढे थे लेकिन अब रीमा को पढना बंद कर दिया।
    रीमा भारती के उपन्यासों में एक्शन दृश्य खूब होते हैं।
    अच्छी समीक्षा के लिए धन्यवाद।

    1. ब्लॉग पर आने और टिपण्णी देने के लिए धन्यवाद। मेरे पास रीमा भारती के अभी भी पांच छः उपन्यास हैं जो की मैंने पढ़े नहीं है। उनको खत्म करके ही नया लेने के विषय में सोचूंगा। अभी पढ़ने के लिए काफी कुछ है। वैसे हिंदी अपराध साहित्य में नायिकाओं नायिकों को केंद्र में रखकर (जहाँ वो अपराध सुलझा रही हों )कम लिखा गया है। इसलिए पढ़ने के लिए विकल्प कम हैं। इसलिए जो मिलता है पढ़ लेता हूँ।

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