आशा है मेरा यह प्रयास आपको पसंद आएगा।
स्रोत: पिक्साबे |
1. वो कौन थी – मनमोहन भाटिया
साईट : प्रतिलिपि
पहला वाक्य:
बीकॉम की पहले साल की परीक्षा समाप्त हो गई।
राजा की परीक्षा खत्म हुई तो वह दिल्ली से मंडी गोबिंदगढ़ अपने घर आ गया था। इधर एक महीना गुजारने के बाद वह वापस दिल्ली जा रहा था कि उसे एक युवती दिखी।युवती सुन्दर थी और राजा सहज ही उससे आकर्षित हो गया। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने राजा को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वो कौन थी?
आखिर कौन थी वो युवती? राजा के साथ ऐसा क्या हुआ था कि उसके मन में यह प्रश्न उठा?
मनमोहन भाटिया जी की कहानी वो कौन थी एक पठनीय कहानी है। यह पाठक को अंत तक बाँध कर रखती है। हाँ, अंत जल्दी निपटाया सा लगा। राजा थोड़ा और जासूसी करके सच का पता लगाता तो कहानी और ज्यादा रोमांचक बन सकती थी। अभी उसे जवाब आसानी से मिल जाता है तो रोमांच थोड़ा कम हो जाता है। फिर भी अच्छा प्रयास है।
मेरी रेटिंग: 3/5
कहानी का लिंक: वो कौन थी
2. डॉक्टर का अपहरण – डॉ हरिकृष्ण देवसरे
साईट : साहित्य विमर्श
पहला वाक्य:
कुछ महीनों पहले आपने डॉक्टर भटनागर के अचानक लापता हो जाने का समाचार पढ़ा होगा।
जब एक रात डॉक्टर भटनागर के घर के दरवाजे की घण्टी बजी तो उनके लिए यह कोई नई बात नहीं थीं। अक्सर मरीज़ की तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें रात बिरात उठा ही दिया जाता था। उनकी पत्नी भी इसकी आदी हो गई थी।
इसलिए डॉक्टर भटनागर मरीज को देखने का ख्याल करके ही दरवाजे तक गए थे और उन्होंने दरवाजा खोल दिया था।
और उसके बाद डॉक्टर भटनागर लापता हो गए थे। मिसेज भटनागर का कहना था कि कोई उन्हें लेने आया था।
आखिर डॉक्टर भटनागर किधर चले गए थे? उन्हें कौन ले गया था? क्या इस रहस्य से पर्दा उठ सका?
डॉक्टर का अपहरण एक रोचक कहानी है। यह कहानी छोटी है और पठनीय है।
मशीन पर आदमी की निर्भरता जिस तरह से बढ़ती जा रही है उसके ऊपर बहुत खूबसूरती से मनन करने के लिए लेखक की कहानी प्रेरित करती है।
मेरे ख्याल से कहानी थोड़ा और बड़ी और ज्यादा रोमांचक होती तो ज्यादा मज़ा आता। ऐसा लगता है जैसे जल्दबाजी में इसे निपटा दिया गया हो। एक बार पढ़ी जा सकती है।
मेरी रेटिंग: 3/5
कहानी का लिंक: डॉक्टर का अपहरण
3. वो बीस घंटे
साईट: फेसबुक
पहला वाक्य:
वो सिर्फ खाली मकान चाहतीं थीं (प्रेतात्माएं)।
दीनानाथ आज बहुत खुश थे। उन्हें मनचाहा ट्रांसफर मिल गया था। इसके अलावा नये शहर में वाजिब कीमत में घर भी मिल गया था। अब बस परिवार के साथ उधर जाकर बसने का इंतजार था।
वह दिन भी आ गया और वो लोग मकान में स्थानांतरित हो गए। वे खुश थे लेकिन यह ख़ुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकी।
आखिर ऐसा क्या हुआ उनके साथ?
आबिद रिज़वी जी कई वर्षों से साहित्य साधना करते आ रहे हैं। अपराध साहित्य,सामाजिक उपन्यास, कहानियाँ, कथेतर साहित्य यानी साहित्य की हर विधा में वो लिख चुके हैं। उनकी इस कहानी में यह अनुभव साफ झलकता है। कहानी शुरुआत से ही पाठक को बांध देती है और यह पकड़ आखिर तक बनी रहती है। कहानी की घटनायें ऐसी हैं जो कि अक्सर हम आस पास सुनते हैं और इनमें कोई बनावट नहीं लगती है। मुझे तो यह कहानी काफी पसंद आई।
मेरी रेटिंग: 5/5
पोस्ट का लिंक: वो बीस घंटे
4. गिद्ध – दिव्या शुक्ला
साईट: प्रतिलिपि
पहला वाक्य:
नवम्बर का आखिरी महीना चल रहा था और हवा में हल्की सी खुनकी तैरेने लगी थी।
आज वह अकेली थी और इस अकेलेपन में जीना उसने सीख लिया था। वह खुश थी। ऐसा नहीं था कि उसकी कभी शादी नहीं हुई लेकिन उसने उस बंधन को तोड़ दिया था। अब उसने अपनी एक दुनिया बना ली थी जिसमे वो कुछ लोगों को ही शामिल करती थी।
ऐसे ही एक उसकी दोस्त संगीता था जिसका की फोन कुछ देर पहले आया था। एक पार्टी थी जिसमें उसे संगीता ने बुलाया था।
आगे क्या हुआ यही कहानी का कथानक है।
गिद्ध की कहानी उन लोगों पर चोट है जिनके लिए औरत एक माँस के टुकड़े से ज्यादा कुछ और नहीं होती है। ऐसे गिद्ध चारो तरफ मौजूद हैं। ये हर तपके के लोग हैं। कहानी की नायिका भी ऐसे ही गिद्धों से जूझती हुई हमे दिखती है। कहानी हमे नायिका की गुजरी जिंदगी में लेकर जाती है साथ ही वर्तमान में भी कहानी बढ़ती है।
कहानी में ऐसी घटनाएं होती है जो पाठक को पता है कि कई बार असल में भी हो चुकी हैं। कहानी सुखान्त भी है तो सिस्टम की बेबसी भी यह दर्शाती है। एक पठनीय कहानी है।
रेटिंग : 4/5
ऑनलाइन लिंक: गिद्ध
5. छोटा जादूगर – जय शंकर प्रसाद
पहला वाक्य:
कार्निवाल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी।
वह खुद को छोटा जादूगर कहता था। चौदह पंद्रह साल के उस बच्चे को जब लेखक ने सर्कस के बाहर देखा तो बरबस ही उसकी तरफ आकर्षित हो गया। आखिर कौन था यह छोटा जादूगर? कार्निवाल के बाहर खड़ा होकर वह क्या कर रहा था।
छोटा जादूगर जय शंकर प्रसाद जी की एक मार्मिक कृति है। अक्सर हम लोगों के विषय में धारणा बनाने में जल्दबाजी कर देते हैं। हो सकता है हमारे बुरे अनुभव भी इसके लिए उत्तरदायी हों लेकिन फिर भी हम एक चश्मे से ही सबको देखने लगते हैं। शहरी जीवन में अक्सर यह चश्मा हमे पहनना पड़ता है। यही कारण है कि कई बार हम लोगों के दुःख को देखते हुए भी उसे अनदेखा कर देते हैं। यह कहानी इसी चीज को दर्शाती है। कहानी पठनीय है और मर्म को स्पर्श कर देती है।
रेटिंग: 5/5
ऑनलाइन लिंक: छोटा जादूगर
6. जंगल में परियाँ – लक्ष्मी खन्ना सुमन
पहला वाक्य:
एक गाँव में, जो जंगल के पास ही था, एक किसान अपनी इकलौती बेटी कमला के साथ रहता था।
कमला को गाँव की महिलाओं के साथ जंगल जाना अच्छा लगता था। महिलाएं तो लकड़ियों के लिए जंगल जाती थी लेकिन कमला को जंगल उसकी सुंदरता और वहाँ मौजूद फूल पत्तियों के लिए पसंद था। उस दिन भी वह जंगल गयी थी लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि कमला जंगल में छूट गयी।
आगे क्या हुआ? क्या कमला वापस गाँव में आई? जंगल में उसका अनुभव कैसा रहा? इन्हीं प्रश्नों के उत्तर आपको इस कहानी को पढ़कर पता लगेंगे।
जंगल में परियाँ एक रोचक बाल कहानी है। रोचकता और पठनीयता के साथ यह शिक्षाप्रद भी है। कहानी का अंत मुझे पसंद आया।
रेटिंग: 5/5
लिंक: जंगल में परियाँ
7. छलावा: एक आत्म कथा – आयुषी सिंह
पहला वाक्य:
नमस्कार दोस्तों!
अनुपम प्रताप सिंह विज्ञान का शिक्षक था। वह वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित करता था। यही कारण था जब एक गाँव में तबादला होकर वो आया और उसने उधर छलावा के विषय में लोगों से सुना तो उसे उनकी बातें बचकानी ही लगी थी। आदमी का अस्तित्व, वो भी मरने के बाद, यह बात उसके वैज्ञानिक सोच वाले दिमाग में पच नहीं रही थी। लेकिन फिर उसके साथ कुछ ऐसा हुआ कि उसे अपनी सोच का दायरा खोलना पड़ा। उसे लगा अभी तक वह एक संकुचित सोच का मालिक था और अब उसकी आँखें असल में खुली थी। आखिर ऐसा क्या हुआ उसके साथ?
छलावा आत्मकथात्मक शैली में लिखी गयी है। आप अनुपम प्रताप सिंह की जबानी ही उसकी आपबीती सुनते हैं। हाँ, कई जगह ऐसा लगता है जैसे थोड़े में ही निपटा दिया हो। छलावा का एक ही पुराना किस्सा कहानी में है।गाँव में उससे जुड़े दो चार किस्से और होते तो ज्यादा अच्छा रहता। कहानी के अंत में एक बारिश वाला सीन है उसमें थोड़ी विवरण और होता तो रोचकता आ सकती थी। कहानी ऐसी है जो यथार्थ के करीब लगती है तो इससे रोमांच में कमी आई है लेकिन फिर भी पठनीय है।
मेरी रेटिंग : 3/5
लिंक: छलावा
8. कोई रोता है मेरे पास बैठकर – देवेंद्र प्रसाद
पहला वाक्य:
मैंने सुना तो था कि अगर रात के समय किसी सुनसान रास्ते पर आपको कोई आवाज़ सुनाई दे तो पीछे पलटकर नहीं देखना चाहिए।
यह एक छोटी सी कहानी है। कहानी का प्लाट मुझे पसंद आया। कहानी में कहीं कहीं विवरण की कमी है जिसके न होने से रोमांच जागृत नहीं हो पाता है। आप किरदार के डर को महसूस नहीं कर पाते हैं। आखिरी के हिस्सों को और विस्तृत तौर पर दर्शाते तो ज्यादा रोमांच कहानी में उतपन्न होता और किरदार के मनोभाव को समझने में पाठक को आसानी होती।
मेरी रेटिंग: 2.5/5
लिंक: कोई रोता है मेरे पास बैठकर
अगर आपको मेरा यह प्रयास पसंद आया है तो टिप्पणी के माध्यम से मुझे बताइयेगा। कहानियों के प्रति अपने विचार आप लेखकों तक कमेंट के माध्यम से पहुँचा सकते हैं। कहानी पढ़ कर अपने विचार जरूर दीजियेगा, उससे लेखकों का उत्साह बढ़ता है।
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बेहतरीन ……, आपका यह प्रयास या यूं कहूँ कि प्रयोग आकर्षक और रोचकता से भरपूर है । बहुत बहुत शुभकामनाएँ…., लिखते रहिए ।
हार्दिक शुक्रिया, मैम।
बहुत बढ़िया विकास भाई। कुछ न कुछ अलग लिखने की ललक बहुत ज़रूरी है ।बहतरीं प्रयास।
शुक्रिया, सिद्धार्थ भाई। बस एक छोटी सी कोशिश है।