जेल से फरार – अनिल मोहन

उपन्यास 7 जून 2019 से 8, जून 2019 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:

फॉर्मेट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 256 | प्रकाशक: रवि पॉकेट बुक्सश्रृंखला: देवराज चौहान सीरीजमूल्य: 80 रूपये

जेल से फरार - अनिल मोहन
जेल से फरार – अनिल मोहन 

रवि पॉकेट बुक्स से प्राकशित अनिल मोहन जी का उपन्यास जेल से फरार जब खरीदा था तो लगा था कि इसमें केवल उपन्यास ही होगा लेकिन इसमें उपन्यास के अलावा तीन कहानियाँ भी हैं। यानी आपको उपन्यास पढ़ने को तो मिलता ही है साथ ही तीन कहानियाँ पढ़ने को भी मिलती हैं। जब भी ऐसा कुछ होता है तो मुझे काफी अच्छा लगता है। सरप्राइज़ किसे नहीं अच्छे लगते हैं,भला।

इस किताब में निम्न रचनाएं प्रकाशित हैं:

जेल से फरार – अनिल मोहन(उपन्यास)
चिराग अलादीन डाइजेस्ट – इब्ने सफी (कहानी )
परदेसी लुटेरा – इब्ने सफी (कहानी)
मुखबिर – अहमद नदीम कासमी(कहानी)

इस पोस्ट में मैं उपन्यास के इतर इन तीन कहानियों पर भी बात करूँगा।

जेल से फरार
पहला वाक्य:
चीमा नारंग के हाथ में थमी रिवॉल्वर पर पकड़ सख्त हो गई।

कहानी:
विक्रम सिंह रंधावा एक नामी गैंगस्टर हुआ करता था। कभी अंडरवर्ल्ड में उसकी तूती बोला करती थी। लेकिन अब उसने इन गैरकानूनी धंधों से किनारा कर लिया था। कहा जाता था कि अब वो कानून के दायरे में रह कर काम कर रहा था।

सूरज रंधावा विक्रम सिंह रंधावा का एकलौता बेटा था। विक्रम सिंह रंधावा की जान सूरज में बसती थी।

देवराज चौहान ने इसी सूरज रंधावा को उठाने की योजना तैयार की थी। और अब वह इसके लिए एक टीम की तलाश कर रहा था।

फिर अपहरण तो हुआ लेकिन उसके साथ परिस्थिति कुछ ऐसी बन गयीं कि देवराज चौहान ने खुद को जेल में पाया।


और अब विक्रम सिंह रंधावा देवराज चौहान को जेल से फरार करवाने के फिराक में था। विक्रम को पता था कि देवराज को जेल से फरार करवाकर ही वो अपने बेटे को वापस पा सकेगा।


आखिर देवराज चौहान सूरज रंधावा को अपहरण क्यों करना चाहता था? इसके लिए उन्हें क्या क्या पापड़ बेलने पड़े?


देवराज चौहान जेल कैसे चला गया?


विक्रम सिंह रंधावा अपने बेटे का अपहरण करने वाले देवराज को जेल से फरार क्यों करवाना चाहता था?

ऐसे ही कई सवालों के जवाब आपको इस उपन्यास को पढ़कर मिलेंगे।

मुख्य किरदार:
चीमा नारंग –  शहर के नामी गैंगस्टर विष्णु प्रताप नारंग की बेटी जिसने विक्रम सिंह रंधावा से अपनी पिता की मौत का बदला लेनी की ठानी थी
देवराज चौहान – डकैती मास्टर
जगमोहन – देवराज का साथी
जुगल किशोर – एक चोर जिसके पास देवराज चौहान गया था
करण चौधरी – जुगल किशोर का साथी
जयचंद भाटिया- देवराज चौहान जिस घर में रह रहा था उस घर के पड़ोस में रहने वाला एक व्यक्ति जो चोरी और लूट पाट करता था
विक्रम सिंह रंधावा – एक कुख्यात अपराधी जो अपराध के धंधे छोड़कर अब व्यापारी बन गया था
सूरज रंधावा – विक्रम सिंह का बेटा
अवतार सिंह – विक्रम सिंह का साथी
महेंद्र सिंह – करण चौधरी का एक साथी
बिल्ला – महेंद्र सिंह का जान पहचान वाला जो कि अपने इलाके का दादा था


मेरे विचार:
जेल से फरार देवराज चौहान श्रृंखला का उपन्यास है। यह उपन्यास रवि पॉकेट बुक्स द्वारा पुनः प्रकाशित किया गया है। उपन्यास की ख़ास बात ये है कि उपन्यास भले ही डकैती मास्टर देवराज चौहान का है लेकिन इस उपन्यास में वो डकैती नहीं डाल रहा है। इस उपन्यास में देवराज चौहान अपहरण करता हुआ दिखाई देता है। ऐसा कम ही होता है जब हम देवराज को डकैती डालते हुए नहीं देखते हैं। वरना अक्सर देवराज चौहान श्रृंखला के उपन्यासों में पहले देवराज डकैती डालता है और फिर कहानी शुरू होती है।

उपन्यास शुरु से लेकर अंत रोचक है। उपन्यास में किरदार इस तरह से फिट किये गये हैं कि वो एक दूसरे को डबल क्रॉस करते रहते हैं जिससे कहानी में रोचकता बनी रहती है। आगे क्या होगा यह पता लगाने के लिए आप पढ़ते जाते हैं।

देवराज चौहान श्रृंखला के उपन्यास अगर आप पढ़ते हैं तो जानते होंगे कि यह उपन्यास रहस्यकथा न होकर रोमांच कथा होते हैं। उपन्यास में क्या होगा यह तो आपको पता होता है लेकिन कैसे होगा और मकसद हासिल करने के लिए किरदारों को किन किन मुसीबतों से गुजरना होगा, यह देखने के लिए आप उपन्यास पढ़ते जाते हैं।

एक अच्छे रोमांच कथा कि एक खूबी यह होती है कि उसका कथानक सरपट भागता है। कहानी इस तरह गठित होती है कि पढ़ते हुए हमारे अन्दर यह भाव रहता है कि आगे क्या होगा।कहानी में एक तरह की urgency होती है और इस urgency के कारण पाठक उपन्यास पढ़ता चला जाता है। यह चीज इस उपन्यास में देखने को मिलती है।इधर भी कथानक तेजी से भागता है और कहीं भी बोरियत का एहसास नहीं होता है।

अक्सर हिन्दी पल्प उपन्यासों में कहानी को जबरदस्ती खींचा जाता है लेकिन इधर यह नहीं दिखता है। कहानी को 208 पृष्ठों में खत्म कर दिया गया है और इन पृष्ठों में कहीं भी ऐसा नहीं लगता है कि इसे जबरदस्ती खींचा गया हो।

यानी उपन्यास पढ़ते हुए आपका भरपूर मनोरंजन होता है और ऊब नहीं होती है।

उपन्यास के सारे किरदार कहानी के अनुरूप ही हैं।  चीमा नारंग एक अच्छा किरदार गढ़ा है जो दहशत भी पैदा करती है। अभी केवल इतना कहूँगा कि उसे आगे इस्तेमाल किया जा सकता था।

देवराज चौहान उसूलो का कितना पक्का है यह इस उपन्यास में देखने को मिलता है। जगमोहन और देवराज की आखिरी का वार्तालाप हँसी दिला देता है।

अंत में यही कहूँगा कि यह उपन्यास मुझे पसंद आया। यह एक अच्छा थ्रिलर है जो कि निराश नहीं करता है।

 रेटिंग: 4/5

चिराग अलादीन डाइजेस्ट  
पहला वाक्य:
अलादीन उस दिन शिद्दत से बोर हो रहा था।

अलादीन उस दिन हद से ज्यादा बोर हो गया था। जब से जिन्न उसके जीवन में आया था तो उसके पास करने को कुछ रह नहीं गया था। वो अपना वक्त काटने के लिए क्या करे वह यही सोच रहा था कि जिन्न ने उसको एक साहित्यिक डाइजेस्ट निकालने की सलाह दे दी। आगे क्या हुआ यही कहानी बनती है।

कहानी रोचक है। कहानी के माध्यम से लेखक ने पत्रिकाएँ किस तरह प्रकाशित होती हैं और उनके अन्दर क्या क्या घपले होते हैं इस पर करारा व्यंग्य किया है। चूँकि मैंने इब्ने सफी की अब तक केवल अपराध कथाएँ ही पढ़ी थीं तो यह कहानी पढ़ना एक ताज़ा अहसास था। कहानी मुझे पसंद आई।

रेटिंग: 3/5

परदेसी लुटेरा – इब्ने सफी 
पहला वाक्य:
शिकागो के बारे में बहुत कुछ सुन और पढ़ रखा था, लेकिन यहाँ पहुँचकर महसूस हुआ जैसे वह किसी दूसरी दुनिया की बातें रही हों, न कोई बैंक लुटता नज़र आया और न फायरों की आवाज़ें सुनाई दीं। 


कथावाचक वैसे तो इंजिनियर था लेकिन शिकागो में उसे काम मजदूरी का ही करना पड़ रहा था। फिर पाकिस्तान में रहकर उसने जो कुछ भी इधर के विषय में सुना था वैसा वो कुछ पा नहीं रहा था। इधर न चोरी हो रही थी और न ही गोलियाँ ही चल रही थीं।

तभी किसी ने उसे बैंक लूटने की सलाह दी और उसने वो मान भी ली। आगे क्या हुआ यही कहानी है।

यह कहानी मुझे थोड़ा अजीब लगी। कथावाचक की शिकागो के विषय में जो धारणा थी वो कैसी बनी? लोग उसे डकैती के लिए क्यों प्रेरित कर रहे थे? यह सब कुछ अजीब सा लगा और मैं समझ न पाया। जिस समय यह कहानी लिखी गई होगी उस वक्त शायद यह कहानी तार्किक रही होगी लेकिन बिना सन्दर्भ के मुझे अभी यह बहुत अजीब लगी।

रेटिंग: 2/5


मुखबिर – अहमद नदीम कासमी 

पहला वाक्य:
लाला तेजभान इंस्पेक्टर ने आबकारी के दफ्तर में मुल्तान के चुने हुए मुखबिरों से मेरा तआरूफ (परिचय) कराया और जब वो जर्द चेहरों और मैली आँखों की उस कतार के आखिर में पहुँचे तो बोले – “यह खादू है।”

कथावाचक जब आबकारी विभाग में नया नया आया तो लाला तेजभान ने उसे सभी मुखबिरों से मिलवाया। विभाग वालों को रेड डालने के लिए और गैकानूनी अफीम और भांग की बिक्री रोकने के लिए इन्ही मुखबिरों पर निर्भर रहना पड़ता था। खादू का नाम इन मुखबिरों में सबसे ऊपर था।

लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि खादू मुखबिरी करने में असफल होता  रहा। वहीं कथावाचक पर भी रेड डालने का दबाव बढ़ता जा रहा था। उसके अफसर चाहते थे कि वह कुछ न कुछ पकड़ कर लाये और उनका सबसे बढ़िया मुखबिर अपना काम नहीं कर पा रहा था।

खादू क्यों मुखबिरी नहीं करा पा रहा था? कथावाचक को क्या रेड डालने के लिए कोई जानकारी मिल पायी? यह सब कहानी पढ़कर ही आपको पता चल पायेगा।

कहानी की बात करूँ तो यह कहानी मुझे ठीक ठाक लगी। खादू नशे का आदि है और अपनी नशे की आदत के लिए पैसे इकट्ठा कर सके इसलिए मुखबिरी करता है। वो ऐसा क्यों करता है ये मुझे समझ नहीं आया। वो नशा बेच भी सकता था।वो ज्यादा आसान होता।मुझे लगता है कहानी से थोड़ा संदर्भ देना चाहिए था ताकि यह साफ हो सके कि कहानी कब और क्यों लिखी गयी। परदेसी लुटेरा की तरह इधर भी काफी बातें साफ नहीं होती हैं।

कहानी का अंत मार्मिक है। अंत में मैं यही सोचता रहा जो खादू ने किया वो क्या इसलिए किया ताकि उसे नशे के लिए पैसे मिलते रहे या वो जानता था कि यह एक काम ही था जिसमें उसका नाम था और वो इस नाम को और डुबाना नहीं चाहता था। वरना अपना नाम तो उसने डूबा ही दिया था। इस मुखबिरी के सिवाय उसके पास था क्या? हो सकता है कि मैं गलत लाइन में सोच रहा हूँ लेकिन मन में यही ख्याल आया था।

मैं अहमद नदीम कासमी साहब की दूसरी कहानियाँ जरूर पढ़ना चाहूँगा।

रेटिंग: 3/5

मुखबिर कहानी पढ़ते पढ़ते मुझे यह याद आ रहा था कि मैंने इस कहानी का नाट्य रूपांतरण कहीं देखा था। अब सर्च किया तो पता लगा कि गुलजार साहब ने किरदार नाम के सीरियल के लिए इस कहानी को फिल्माया था।

अगर इधर न देखना चाहें तो एपिसोड आप निम्न लिंक पर भी जाकर देख सकते हैं।
मुखबिर – किरदार

अगर आपने इस किताब  को पढ़ा है तो आपको यह कैसी लगी?

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अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो आप इसे रवि पॉकेट बुक्स से सम्पर्क करके मँगवा सकते हैं।

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इब्ने सफी

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हिन्दी पल्प फिक्शन 

© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “जेल से फरार – अनिल मोहन”

  1. अनिल सर के बेहतरीन उपन्यासों में से एक है। कहानी में अच्छी कसावट और रोमांच उपन्यास को बेहतरीन बनाते हैं।
    मेरे पास जो उपन्यास था उसमें अतिरिक्त कहानियाँ नहीं थी।
    अच्छी समीक्षा, धन्यवाद।
    – गुरप्रीत सिंह

    1. जी सही कहा। पुनः प्रकाशित संस्करण में अक्सर ऐसी कहानियाँ हैं जो कि अच्छा चलन है। इससे पहले खून का रिश्ता नाम के उपन्यास में भी ऐसा था।

    1. जी आभार। किताब पर लिखा लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा।

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