संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 128 | प्रकाशक: हार्पर कॉलिंस | श्रृंखला: जासूसी दुनिया #5 | पहला प्रकाशन: 1952
किताब लिंक: पेपरबैक | किंडल
पहला वाक्य:
डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन की इमारत सुबह की धुंध में डूबी कुछ अजीब सी लग रही थी।
कहानी:
लियोनार्ड एक अंतर्राष्ट्रीय ब्लैकमेलर था जिसके कारनामों के चर्चे पूरे यूरोप में प्रसिद्ध थे। लियोनार्ड अक्सर अमीर लोगों के काले राज जानकार उनके एवज में पैसे ऐंठा करता था। उसने कई नामचीन लोगों को अपना शिकार बनाया था लेकिन आजतक कोई लियोनार्ड का बाल भी बाँका नहीं कर पाया था। लियोनार्ड न केवल बदस्तूर अपने कारनामों को अंजाम देता आया था बल्कि वह अपनी पहचान छुपाने में भी कामयाब रहा था।
लियोनार्ड कौन था यह बात कोई नहीं जान पाया था।
और अब यह लियोनार्ड हिंदुस्तान में था और अपने काले कारनामों को हिंदुस्तान की धरती पर अंजाम दे रहा था।
डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन को लियोनार्ड के हिंदुस्तान में होने की खबर लग चुकी थी और उससे निपटने की तैयारी उन्होंने कर ली थी। फरीदी भी उस टीम का हिस्सा था जिसको लियोनार्ड को पकड़ने का जिम्मा दिया गया था।
क्या लियोनार्ड वाकई हिंदुस्तान में था?
क्या फरीदी लियोनार्ड को पकड़ पाया?
आखिर लियोनार्ड को पकड़ने के लिये फरीदी को क्या क्या करना पड़ा?
मुख्य किरदार:
पी एल जेक्सन – डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन का सुप्रीटेंडेंट
फरीदी – डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन का एक इन्स्पेक्टर
हमीद – फरीदी का मातहत
अदनान – प्रिंस ऑफ़ ईराक जो कि इस वक्त भारत में था
लियोनार्ड – एक अंतर्राष्ट्रीय अपराधी
मिस्टर रोबर्ट – जिलाधिकारी
रशीदुज़्ज़माँ – दराब नगर का नवाब
गज़ाला – नवाब रशीदुज़्ज़माँ की बेटी
फ़ज़लू – न्यू स्टार प्रेस में काम करने वाला एक व्यक्ति
मेरे विचार:
जैसा की नाम से जाहिर है इस उपन्यास का कथानक फरीदी और लियोनार्ड के बीच की प्रतिद्वन्दता पर आधारित है। इधर जहाँ एक तरफ फरीदी लियोनार्ड को पकड़ना चाहता है वहीं लियोनार्ड भी फरीदी से एक कदम आगे रहकर अपने कारनामों को अंजाम देना चाहता है।
उपन्यास की शुरुआत में ही पाठकों को पता चल जाता है कि लियोनार्ड नाम का अंतरराष्ट्रीय अपराधी भारत में है और फरीदी की नज़र उस पर है। इसके बाद फरीदी कैसे इस अपराधी को पकड़ता है यही उपन्यास में कथानक बनता है।
उपन्यास में भले ही लियोनार्ड का नाम शुरुआत में आ जाता है लेकिन वह कौन है इसका पता अंत तक ही पाठकों को लग पाता है। उपन्यास के ज्यादातर हिस्से में लियोनार्ड अपने प्यादों के माध्यम से चाले चलता हुआ है दिखाया जाता है। वहीं फरीदी हमीद के साथ लियोनार्ड का असली परिचय जानने के लिए दौड़ भाग करता ही दिखता है। इस दौड़ भाग में वह कभी सफल और कभी असफल होता है। लियोनार्ड और फरीदी के बीच के यही दाँव पेंच उपन्यास में रोचकता बनाये रखते हैं।
इस उपन्यास को पढ़ने के दौरान फरीदी के विषय में भी काफी कुछ नया पाठकों को पता चलता जाता है। फरीदी ने शहर में ऐसे लोगों और ठिकाने का जाल बिछा रखा है जो कि केवल उसे ही पता है और उसकी नौकरी का हिस्सा नहीं है। हमीद को भी इन लोगों और ठिकानों के विषय में इस उपन्यास में पहली बार पता चलता है। वहीं वह ऐसे लोगों से भी अक्सर कार्य लेता है जो कि अपराधी ही कहलायेंगे।
उपन्यास के अन्य किरदारों की बात करूँ तो हमीद हमेशा की तरह उपन्यास में फरीदी के साथ है। उपन्यास में फरीदी और हमीद की चुहलबाजी भी मौजूद है जो कि उपन्यास को रोचकता प्रदान करती है। उदाहरण देखिये:
“अजीब गधे आदमी हो।” फरीदी ने झुँझला कर कहा।
“यह बिल्कुल नामुमकिन है।” हमीद ने कहा। “मैं या तो गधा हो सकता हूँ या आदमी। एक ही वक्त में गधा और आदमी होना मेरे बस की बात नहीं। चाहे फिर नौकरी रहे या जाए।”
“सीधी तरह निकालते हो सर्टिफिकेट या दूँ एक घूसा।” फरीदी ने कहा।
“शौक से दीजिये। मैं उसे बहुत ही हिफाजत से अपने बक्स में रख दूँगा।”
“क्या बकवास है।”
“हुजूर, यह बकवास नहीं, फलसफा है।”
“जहन्नुम में जाओ तुम और तुम्हारा फलसफा दोनों।” फरीदी ने झुँझला कर कहा।
उपन्यास का मुख्य खलनायक लियोनार्ड है जिसका जिक्र तो उपन्यास के शुरुआत से लेकर अंत तक होता है लेकिन वह खुद अंत में ही आता है। वह पूरे उपन्यास में फरीदी से दो कदम आगे ही रहता है और इसलिए एक तगड़ा खलनायक लगता है। शायद इस कारण जिस तरह से आखिर में लियोनार्ड पर विजय पाई गयी उसमें मुझे थोड़ा कमी लगी। यह कार्य थोड़ा और बेहतर तरीके से हो सकता था।
उपन्यास के बाकी किरदार कहानी के अनुरूप ही हैं। ग़ज़ाला और उसके पिता इस उपन्यास में आने के बाद अगले उपन्यास में भी अपनी हाजरी देते हैं।
किताब के कथानक की बात करूँ तो यह रोचक है। कथानक इस तरह बुना गया है कि घटनाएं तेजी से घटित होती है जो कि पाठक की रूचि कथानक में बनाये रखती हैं। कहानी में जासूसी दुनिया के कई तत्वों का इस्तेमाल किया गया है। इधर बहरूपिये हैं, खुफिये रास्ते हैं और ऐसे उपकरण भी हैं जो कि दिखते कुछ और हैं और होते कुछ और हैं। यह सब मिलकर एक रोचक एवं रोमांचक वातावरण का निर्माण कर देते हैं।
हाँ, लियोनार्ड असल में कौन है इसका शक मुझे पहले ही हो गया था और यह शक आखिर में सही भी साबित हुआ तो इसने मुझे जरूर निराश किया। अगर शक गलत साबित होता तो मुझे ज्यादा ख़ुशी होती। वहीं 123 पृष्ठ के उपन्यास में जिस तरह से भेस बदलने को प्लाट आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया है वह थोड़ा कम किया होता तो शायद बेहतर होता।
उपन्यास का कथानक लगभग पचास-साठ साल पहले लिखा गया था उस हिसाब से यह अच्छा बन पड़ा है। उपन्यास शुरुआत से लेकर अंत तक पठनीय है और एक बार पढ़ा जा सकता है।
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
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