सार्जेन्ट भूतनाथ,ये सिर किसका है

पिछले सप्ताहंत (24-25 मार्च 2018) को दो comics पढ़ीं। दोनों ही राज के थ्रिल हॉरर सस्पेंस श्रृंखला के कॉमिक्स थे। प्रस्तुत हैं उनके विषय में मेरे विचार:

1. सार्जेंट भूतनाथ

रेटिंग : 3/5
कहानी 2/5
आर्टवर्क 4/5  
कॉमिक 24 मार्च 2018 को पढ़ा गया 

संस्करण विवरण:
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 48
प्रकाशक : राज कॉमिक्स
आईएसबीएन:9789332410473
लेखक : तरुण कुमार वाही सम्पादक: मनीष गुप्ता, चित्रांकन : धीरज वर्मा, इंकिंग: भूपेन्द्र वालिया,अजहर, प्रदीप सहरावत, कैलीग्राफी: टी आर आज़ाद, रंग : सुनील पाण्डेय 
मूल्य : 50 रूपये
शहर के अपराधी खौफ में थे। उनकी माने तो एक शक्ति उनके पीछे पड़ी थी। वो एक मृतात्मा थी जो खुद को सार्जेन्ट भूतनाथ कहती थी। ये आत्मा अपराधियों को पकड़कर सजा दे रही थी।
आखिर क्या रहस्य था इसके पीछे?  क्या शहर के अपराधियों पर सचमुच किसी आत्मा का प्रकोप था?
अगर ऐसा था तो कौन था सार्जेन्ट भूतनाथ? क्यों वो अपराधियों के पीछे पड़ा था?


सार्जेंट भूतनाथ एक ईमानदार अफसर की कहानी है। कई बार जब हम पुलिस से मुखातिब होते हैं तो हमे एक भ्रष्ट इन्सान ही दिखता है। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। हो सकता है कई पुलिस वाले भ्रष्ट हो लेकिन कभी सोचा है वो ऐसा क्यों बने। कई बार जब एक ईमानदार पुलिसवाला अपना काम कर रहा होता है तो सिस्टम ही उसे नहीं करने देता और फिर उसे खुद पता नहीं लगता कि कितने सालों में वो इस सिस्टम का पुर्जा बन गया है।
यही चीज इस कॉमिक में भी दर्शायी गई है। सार्जेंट अमरनाथ केवल ईमानदारी से अपना काम करना चाहता था लेकिन उसे करने नहीं दिया जाता है। आगे क्या हुआ इस कॉमिक की कहानी है।

कॉमिक की कहानी की बात करूँ तो कहानी मुझे साधारण लगी। हमने कई बार ऐसी कहानी पढ़ी होगी। ईमानदार अफसर जिसे मुश्किलातों का सामना करना पड़ा। कई फिल्में इसके ऊपर बनी हैं। लेकिन इसका नया पन आत्मा वाला कोण था। उधर रोमांच होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं है। इसका कारण ये था कि कहानी में भूतनाथ सब पर भारी पड़ता है। थोड़ा बहुत संघर्ष है लेकिन वो भूतनाथ को नहीं करना पड़ता। अगर भूतनाथ के सामने कोई ऐसा प्रतिद्वंदी आता जिससे लड़ने में उसे थोड़ी मेहनत मशक्कत करनी पड़ती तो कॉमिक का रोमांच बढ़ जाता। अभी तो सबको वो गाजर मूली की तरह काटता रहता है जिसे पढ़ने में मजा नहीं आता है।

हाँ, कॉमिक के आर्टवर्क की तारीफ़ बनती है। जब हम आर्टवर्क की बात करते हैं तो ज्यादातर हमारे मष्तिष्क में पेंसिलर का कार्य ही उभरता है। वो काम इधर भी निसंदेह अच्छा है लेकिन आर्टवर्क पर चार चाँद इस बार कलरिस्ट सुनील पाण्डेय ने लगाये हैं। जिस तरह का कलर स्कीम इस कॉमिक में इस्तेमाल की गई है वो इस चित्रकथा को एक अलौकिक(सुपरनेचुरल) फील देती है। ऐसा लगता है हम आत्मा की दृष्टि से दुनिया को देख रहे हैं। ये एक अलग तरीके का अनुभव था मेरे लिए। चूँकि ये एक हॉरर कहानी तो इस कारण कहानी पढने का मजा बढ़ जाता है। मुझे आर्टवर्क काफी पसन्द आया। इसके इलावा कॉमिक के पृष्ठ भी उत्तम गुणवत्ता के हैं।

आखिर में यही कहूँगा कि कहानी में थोड़ा अच्छा खलनायक होता तो कहानी तगड़ी बन सकती थी लेकिन फिर भी एक बार पढ़ी जा सकती है।

2.ये सिर किसका है

रेटिंग : 2/5
कहानी : 2/5
आर्टवर्क : 2/5
कॉमिक : 25 मार्च 2018 को पढ़ा गया 
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक 
पृष्ठ संख्या : 32
प्रकाशक : राज कॉमिक्स 
आईएसबीएन:9788184918342
लेखक : मीनू वाही,सम्पादन : मनीष गुप्ता, कला निर्देशन : प्रताप मुलिक, चित्रांकन : राहुल, मिलिंद 
मूल्य : 25 रूपये 
मिनी सर्कस आज जिस मकबूलियत पे था उसके पीछे उसके सात जाँबाज़ो का हाथ था। वो सात जाँबाज थे : 
विक्टर,ग्लोरिया,एजाज,ब्रावो,तूतन,बैटमैन और मास्टर। 
विक्टर सर्कस का मालिक था  जो चाकू फेंकने में उस्ताद था। ग्लोरिया विक्टर के साथ मिलकर चाकू के खेल में अपनी ज़िन्दगी को हथेली में रख कर भाग लेती थी। एजाज़  जगलिंग में माहिर था। तूतन आग के घेरे के बीच से कूदने वाले खेल से दर्शकों के भीतर रोमांच पैदा कर देता था। ब्रावो हाथी के साथ मिलकर ऐसे करतब दिखलाता कि दर्शक दाँतों तले उँगलियाँ दबा देते। मास्टर ऊँचाई में दो पोल्स के बीच बन्धी रस्सी में बाइक चलाने में उस्ताद था। और बैटमैन ने अपने शरीर को चमगादड़ों का घर बना दिया था।
अपने निराले खेलों से सबने दर्शकों का मन मोह लिया था। लेकिन फिर भी खेल कितने ही निराले हों दर्शक हमेशा किसी नयी चीज की तलाश में रहते है। ये बात विक्टर मालिक होने के नाते अच्छी तरह से जानता था। और इसी कारण उसने बाकियों को एक आर्डर दिया।
विक्टर के इस आर्डर ने सभी के पैरों तले जमीन खिसका दी। विक्टर के इस सनकी रवैये से वो पहले ही परेशान था। उन्हें लगता कि विक्टर उन्हें गुलाम बनाकर रखना चाहता था। इस आखिरी फैसले ने उनके मन में धधकती क्रोधाग्नि को और तेज कर दिया। और फिर उन्होंने वो फैसला किया। फैसला विक्टर को रास्ते से हटाने का।
क्या वो विक्टर को रास्ते से हटा पाये? 
उन्होंने इस काम को किस तरह अंजाम दिया? 
अगर वे सफ़ल हुए तो उनकी इस साजिश का क्या परिणाम हुआ?
सवाल तो कई हैं। जवाब केवल कॉमिक पढ़ने के बाद ही मिलेंगे।
मीनू वाही जी कि कहानी मुख्य रूप से बदले की कहानी है। ऐसी कहानी कई बार पाठक के तौर पर मैं पढ़ चुका हूँ। कहानी में मेरी रूचि जिस चीज ने जागृत की थी वो इसका शीर्षक और आवरण था। उसमे एक व्यक्ति बना है जिसका सिर नहीं है लेकिन उसके हाथों में कई सिर हैं और यहाँ वहाँ काफी लाशें पड़ी हैं। जब कॉमिक मैंने लिया तो मन में यही सवाल था कि ये सिरकटा कौन है? क्यों लोगों के सिर काट रहा है और क्यों इन्हें इकट्ठा कर रहा है। इस उतुस्कता को पहले पृष्ठ ने भी  बढ़ाया क्योंकि उसमे भी एक सिरकटा एक शेल्फ, जिसमे की कई सिर रखें हैं, से एक सिर चुन रहा होता है। लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि ऐसा कुछ इस कॉमिक्स में नहीं था।

सिर कोई ले तो जाता है लेकिन उसका उतना प्रभाव नहीं बन पाता है। मुझे लगता है कि आवरण और पहले पृष्ठ के कारण मेरे मन में कथानक को लेकर कुछ और अपेक्षा थी और चूँकि वो पूरी नहीं हुई तो इस कारण में मुझे कहानी पढ़कर उतनी संतुष्टि नहीं मिली। अगर अपेक्षा के बिना पढता तो कथानक ज्यादा एन्जॉय कर पाता।

वैसे कथानक ठीक ठाक है। आत्मा जो करती है वो क्यों करती है ये मैं समझ सकता हूँ। उसकी हरकतें किरदारों के लिए तो भयावह थी। लेकिन इससे पाठक के रूप में मेरा रोमांच कम हुआ। अगर मैं किरदारों की जगह होता तो किस मानसिक पीड़ा से गुजरता वो मैं समझ सकता हूँ लेकिन पाठक के तौर पर जिस रोमांच की तलाश मुझे थी वो मुझे इतनी नहीं मिली। अगर आत्मा गुनाहगारों को सजा थोड़े और रोचक ढंग से दे पाती तो मजा आता।

कहानी में कई लॉजिकल दिक्कत तो हैं ही। उदारहण के लिए दुर्घटना वश हुई मृत्यु में अगर कोई दोषी पाया जाता है तो उसे फाँसी नहीं होती। यहाँ लेखिका ने लिबर्टी ली है और उस किरदार को फाँसी चढवा दिया। अगर कहानी में थोड़ा और काम होता तो बेहतर बन सकती थी। और लिबर्टी लेनी की जरूरत भी नहीं पड़ती। हो सकता है मैं नुक्ताचीनी कर रहा हूँ लेकिन अगर इन बिन्दुओं पर काम होता तो मुझे लगता है कथानक और बेहतर ही बनता।

कॉमिक में एक सीन में है जिसमे आत्मा को झाड़ियों में अपना सिर खोजते हुए दिखाया गया है। वो मुझे काफी डरावना लगा। ऐसा इसलिए भी क्योंकि मेरे घर पौड़ी में जाते हुए रास्ते में काफी झाड़ियाँ पड़ती है तो मैं ये सोच रहा था कि अगर रात को मुझे ऐसा कोई दिख जाये तो मेरा क्या होगा? सोचकर ही डर लगता है। आपका क्या ख्याल है? कहीं जाते वक्त झाड़ी दिखे तो एक बार कल्पना करके देखिएगा।

कॉमिक का आर्ट वर्क ठीक ठाक है। कॉमिक पुराना है तो आर्टवर्क उसी हिसाब से बना है। हाँ चूँकि मैंने इसे सार्जेंट भूतनाथ इसे पढने से पहले पढ़ा था तो मुझे इसकी गुणवत्ता काफी कम लगी। क्योंकि दोनों एक के बाद एक पढ़े थे तो आर्टवर्क के मामले में तो तुलना होनी ही थी।  पृष्ठों की गुणवत्ता में भी ये कॉमिक मात खाता है।

बहरहाल कॉमिक ठीक ठाक है और ज्यादा सोच विचार न करें तो एक बार पढ़ी जा सकती है।

अगर आपने इन कॉमिक्स को पढ़ा है तो आपको ये कैसी लगी? आपके इनके प्रति कैसे विचार थे? अपने विचारों से मुझे कमेंट बॉक्स में कमेट करके अवगत करवा सकते हैं। अगर आपने इन्हें नहीं पढ़ा है तो राज कॉमिक की साईट से इन्हें मँगवा सकते हैं:


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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