तेहरवाँ दिन, खुर्रा

तेहरवाँ दिन

रेटिंग 2.75/5
आर्टवर्क : 3.5/5
कहानी : 2/5

कॉमिकस 25 जनवरी 2018 को पढ़ा


संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 56
प्रकाशक : राज कॉमिक्स
आईएसबीएन: 9789332414211
लेखक : तरुण कुमार वाही,चित्रांकन : आदिल खान, इंकिंग : सुरेश कुमार, विवेक गोयल,सम्पादक : मनीष गुप्ता

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के तेहरवे दिन में ही आत्मा सांसारिक बंधनों से मुक्त हो परामात्मा से मिलने को निकल पड़ती है। शांतिप्रसाद की मृत्यु तो हो चुकी थी लेकिन उसे इस बात का एहसास नहीं था। यही कारण था कि इस आत्मा ने सबको परेशान कर रखा था।

आखिर कौन था शांति प्रसाद?? उसकी आत्मा को क्या कष्ट था? और तेहरवे दिन से पहले उसने ऐसा क्या किया कि उसके  नाते रिश्तेदार खौफ  में थे?

ये सब तो आपको कहानी पढ़कर ही पता चलेगा।
तेहरवाँ दिन एक अतृप्त आत्मा की कहानी है। कहानी तो औसत है लेकिन इसका आर्टवर्क उम्दा है। और छपाई चूँकि ग्लॉस पेपर पे हुई है तो पढने में मजा आता है। कहानी सरल है और पूरी कहानी में आत्मा ही भारी पड़ती है। आत्मा और पीड़ितों के बीच संघर्ष और खींचतान ज्यादा होती तो पढने में मज़ा आता। हाँ, कहानी का कांसेप्ट मुझे अच्छा लगा और अंत में कहानी के अंत को खुला छोड़ा वो भी बढ़िया लगा।

मेरे हिसाब से औसत होते हुए भी एक बार पढ़ी जा सकती है।


खुर्रा

रेटिंग: 2/5

आर्टवर्क : 2/5
कहानी : 2/5
कॉमिकस 26 जनवरी 2018 को पढ़ी गई
संस्करण विवरण:
फॉरमेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 32
प्रकाशक : राज कॉमिकस
आईएसबीएन : 9788184918441
लेखक : तरुण कुमार वाही, चित्रांकन: विनोद, सम्पादक: मनीष गुप्ता

उसका नाम खुर्रा था। खुर्रा, रेस का ऐसा घोड़ा जिसका कोई सानी नहीं था। उसकी सफलता के परचम रेस के मैदानों में लहरा रहे थे। और जहाँ सफलता होती है वहाँ उस सफलता से जलने वाले लोग भी होते हैं।
और उन्ही लोगों का शिकार हो गये खुर्रा और उसका जॉकी जॉनी भी। 
आगे जो हुआ वही इस कॉमिकस का कथानक बनता है। आखिर कौन थे वो लोग? उन्होंने क्या षडयंत्र रचा था? इस कहानी का अंत कैसे हुआ?
खुर्रा एक बदले की दास्तान है। ऐसी कई कहानियाँ आपने सुनी होंगी जिसमे सताये हये मजलूम मरने के बाद अपने ऊपर हुए जुल्मों का बदला अतियायियों से लेते हैं। ये भी ऐसी ही कहानी है। कहानी जटिल नहीं है और सीधा बढ़ती है।
हाँ, एक बात मुझे अजीब लगी साईसों  की बस्ती में एक अस्तबल गिरता है और एक घोड़ा और जॉकी मारे जाते हैं। वो इस बात के ऊपर विचार विमर्श भी करते हैं लेकिन वो उधर नहीं जाते। क्योंकि अगर वो जाते तो उन्हें लाशें मिल जाती। लेकिन ऐसा होता तो कहानी आगे नहीं बढ़ती।
ये काफी पुराना कॉमिकस है क्योंकि इसमें जितने कॉमिकस के विज्ञापन हैं उनकी कीमत 6-7 रुपये है। जबकि इस कॉमिकस के राज वाले 20 रुपये ले रहे हैं। मुझे यकीन है स्टीकर निकालूँगा तो कीमत 6-7 रुपये ही निकलेगी। अगर इसे वक्त के हिसाब से देखा जाए तो अपने वक्त के हिसाब से ये ठीक ठाक कहानी लगी मुझे। कहानी में ज्यादा ट्विस्ट नहीं है लेकिन 30 पृष्ठों में ये शायद ही मुमकिन होता। तो मेरे हिसाब से एक बार पढ़ी जा सकती है।

आर्टवर्क भी कॉमिक्स के वक्त के हिसाब से ठीक है लेकिन आज के जमाने में औसत लगता है।

कॉमिक्स बहुत अच्छा तो नहीं है लेकिन बहुत खराब भी नहीं है। एक औसत कॉमिक्स जिसे एक बार पढ़ा जा सकता है। पढ़ते हुए आपको पता रहेगा कि आगे क्या होगा। हाँ, कॉमिक्स के अंत में एक तांत्रिक टाइप का किरदार न जाने क्यों लेकर आये। मुझे लगा था उसके आने से कुछ फर्क पड़ेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। 

अगर आपने ये कॉमिक्स पढ़े हैं तो आपको ये कैसे लगे? कमेंट बॉक्स में अपनी टिपण्णी के माध्यम से बताईयेगा। अगर आपने इन्हें नहीं पढ़ा है और पढ़ना चाहते हैं ये आपको राज कॉमिक्स की साईट पर निम्न लिंक पर जाकर प्राप्त हो सकते हैं:

तेहरवाँ दिन


खुर्रा


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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