उपन्यास दिसम्बर 23 2017 से दिसम्बर 24 के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 50
प्रकाशक : सूरज पॉकेट बुक्स
आईएसबीएन : 9789382359852
श्रृंखला : राजन इकबाल रिबॉर्न #1
पहला वाक्य:
इकबाल उस खूबसूरत घाटी में चलता जा रहा था।
गढ़ हिमालय में बसा हुआ एक खूबसूरत पर्वतीय स्थल था। प्रकृति ने अपनी अनुपम निधि से प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संपदा इस छोटे से कसबे पे लुटाई थी। इसका असर ये हुआ था कि ये देशी विदेशी दोनों सैलानियों को अपने ओर आकृष्ट करता था। लोग इसकी खूबसूरती और शांत वातावरण का लुत्फ़ उठाने इधर आते थे।
लेकिन कुछ दिनों से इधर का माहौल खराब होता जा रहा था। नशा रुपी दानव अपना सिर उठा रहा था और गढ़ की खूबसूरती पर एक बड़ा दाग बनता जा रहा था। इस नशे के कारोबार को रोकने में यहाँ की पुलिस भी जब विफल हो गई तो सीक्रेट एजेंट राजन इकबाल को इधर भेजा गया।
लेकिन इस व्यापार में लिप्त लोग जितने ताकतवर थे उतने ही नृशंस भी थे। वहाँ की पुलिस भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकी थी। ऐसे में क्या हमारे सीक्रेट एजेंट अपने मकसद में कामयाब हो पाये?
इस मिशन में उन्हें किन किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?
आखिर नशे के कारोबार में लिप्त व्यक्ति कौन थे?
इन सब सवालों का जवाब आपको इस लघु-उपन्यास को पढ़ने के पश्चात मिलेगा।
मुख्य किरदार :
मैंने जिस संस्करण में ये उपन्यास पढ़ा था वो एक डाइजेस्ट थी। उसमे राजन इकबाल रिबॉर्न श्रृंखला के पहले दो उपन्यास थे। मैं इस पोस्ट में खाली पहले उपन्यास के विषय में लिखूँगा क्योंकि दोनों के विषय में लिखने पर पोस्ट काफी लम्बी हो जाएगी।
राजन इकबाल की वापसी/गोलियों का बाज़ार राजन इकबाल रिबॉर्न श्रृंखला का पहला लघु उपन्यास है। ये बात तो सभी जानते हैं कि शुभानन्द जी राजन इकबाल के बड़े फैन हैं और जब काफी दिनों तक श्री एस सी बेदी की कलम से इन किरदारों के कारनामे नहीं आये तो उन्होंने ही इस श्रृंखला के उपन्यास लिखने शुरू किये और ये ही उपन्यास राजन इकबाल रिबोर्न श्रृंखला के हिस्से बने।
राजन इकबाल का ये कारनामा कई मामलों में बेदी जी के उपन्यास की याद दिलाता है और कई मामलों में जुदा भी है। उपन्यास में इकबाल का मजाकिया अंदाज और झख हैं तो संजीदा राजन है। दोनों की जोड़ियों को चार चाँद लगाने वाले सलमा और शोभा भी हैं। संवाद सरल हैं। एक्शन भी है। और हल्की फुल्की कॉमेडी भी है।
वहीं इसमें फर्क ये है राजन इकबाल काफी आधुनिक हो चुके हैं। वो जीपीएस और फोन का इस्तेमाल करते हैं। ट्रैकर को रिराउट करना जानते हैं जो दर्शाता है कि लिखने वाले ने वक्त के साथ किरदारों को भी अपडेट किया है।
उपन्यास में रोमांच और एक्शन भरपूर है। खलनायक कौन है? ये एक रहस्य है जो कि उपन्यास में काफी अंत तक बना रहता है और पाठक को उपन्यास पढ़ते जाने के लिए मजबूर करता है।
उपन्यास में कमी तो इतनी ख़ास नहीं है फिर लेकिन फिर भी एक दो चीज जो मुझे खटकी वो निम्न हैं।
उपन्यास में कई वाक्य अंग्रेजी में हैं। उनके साथ उनका हिंदी अनुवाद भी दिया होता तो बेहतर होता।अभी ये माना जा रहा है कि उपन्यास पढने वाले को अंग्रेजी का ज्ञान है जो कि मेरे हिसाब से ठीक नहीं है। इसके इलावा दो तीन जगह वर्तनी की गलती भी हैं लेकिन मैंने उनके पृष्ठ नंबर नोट करना अब बंद कर दिया था क्योंकि वो एक दो जगह ही थे।
उपन्यास में जिस तरह से पाठक के ऊपर खलनायक की पहचान उजागर होती है वो मुझे थोड़ी अटपटी लगी। अभी एक संवाद के माध्यम( जो कि खलनायक के साथ हो रहा होता है) से ऐसा किया गया। और पाठकों को इसका पता जासूसों द्वारा ये बताने से पहले ही हो जाता है कि नायक रहस्य तक कैसे पहुँचे। खलनायक का नाम उसी वक्त उजागर होता तो रोमांच काफी बढ़ जाता।
उपन्यास में नशे के कारोबार का मुख्य बॉस रहता है उसके विषय में कुछ भी नहीं बताया गया है। उपन्यास गढ़ में ही सीमित रह जाता है। मुझे उम्मीद है वो बॉस आगे के उपन्यास में आयेगा और हमारे नायकों के एक और रोमांचक कारनामे का कारण बनेगा।
उपन्यास में एक संवाद है कि राजन और शोभा 15 सालों से साथ हैं (पृष्ठ 31)। ये संवाद पढ़कर मुझे अटपटा लगा। राजन इक़बाल तो शायद ज्यादा से ज्यादा पच्चीस तीस साल के ही हैं। ऐसे में इस संवाद से मुझे थोड़ा खटका सा लगा। इससे कहानी में तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन अजीब लगा तो इधर लिख दिया।
अंत में केवल इतना ही कहूँगा कि उपन्यास रोमांचक और पठनीय है।मैंने एक ही सिटींग में इसे पढ़ लिया था। अगर आप राजन इकबाल के प्रशंसक हैं तो आपको इसे जरूर पढ़ना चाहिए। अगर नहीं है तो एक बार पढ़कर देखिये। हो सकता है आपको पढने के लिए कुछ नया मिल जाये।
अगर आपने उपन्यास पढ़ा है तो आपको ये कैसा लगा? अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दीजियेगा।
अगर आपने उपन्यास नहीं पढ़ा है और पढना चाहते हैं तो इसे निम्न लिंक से मंगवा सकते है:
बढ़िया समीक्षा
शुक्रिया, अभिषेक भाई…. वैसे मैं इन्हें समीक्षा नहीं कहता…ये तो एक साधारण पाठक के विचार हैं… आप ब्लॉग पर आये अच्छा लगा.. आते रहियेगा…
अच्छी समीक्षा है |मैंने बचपन में बाल उपन्यास नही पढ़े | राजन-इक़बाल के बारे में इस उपन्यास से पता चला था | लघु उपन्यास है मुझे भी पसंद आया था |
जी आपकी तरह मैंने भी बाल उपन्यास नहीं पढ़े थे। बाद में राजा से कुछ लिए थे। लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा।