सम्पादक: मनीष चन्द्र गुप्त |
कथा एवम चित्रांकन : अनुपम सिन्हा
राजनगर के अपराधियों के लिए ध्रुव किसी यमराज से कम नहीं है। जिस प्रकार यमराज पापियों की आत्मा को नर्क में ले जाते हैं उसी प्रकार ध्रुव राजनगर की आपराधिक आत्माओं को जेल के द्वार तक पहुँचा कर अपना फर्ज पूरा करता है। लेकिन ध्रुव आखिर ध्रुव कैसे बना? वो क्या कारण थे जिनके चलते वह इस रास्ते पे निकला। इन सब सवालों का जवाब ये कॉमिक्स देती है।
कॉमिक्स की बात करूँ तो इसका चित्रांकन अच्छा है और कथानक कसा हुआ है जो कि आपको बोर नहीं होने देता।
हाँ, एक बात मुझे अटपटी लगी। ध्रुव के माता पिता केवल करतब करते हुए ही एक पोशाक पहनते थे और बाकी वक्त नार्मल कपडे पहनते थे। लेकिन ध्रुव को नॉर्मल (साधारण) कपड़े पहनते हुए इस कॉमिक्स में नहीं दिखाया गया है। जब वो छोटा था तो भी उसकी पीली टी शर्ट और एक नीला शोर्ट था। जब आग लगती है (कहाँ लगती है और क्यों लगती है ये जानने के लिए आपको कॉमिक्स पढ़ना होगा ) तो भी वो पोशाक पहने होता है। ऐसे में मन में सवाल उठता है कि क्या उसके पास कोई अन्य कपड़े नहीं थे। रात के वक्त वो पोशाक धारण क्यों किये हुए था और ऐसी पोशाक को बनाने का उसको ख्याल कैसे आया।
इसके इलावा उसके जानवरों से बात करने की कला के ऊपर भी थोड़ा और प्रकाश डालना चाहिए था। क्या उसने ये किसी से सीखी? सर्कस के जानवर उसे प्यार करते थे ये बात तो एक बार के लिए समझ आ सकती है लेकिन बाहरी जानवर भी ऐसा करते हैं इसका कोई तुक मुझे समझ नहीं आया। ये वाला बिंदु थोड़ा कमजोर लगता है।
बाकी कॉमिक्स एक बार पढ़ा जा सकता है। मैंने तो पंद्रह बीस मिनट में ही निपटा दिया।
२) रोमन हत्यारा 2.5/5
सम्पादक: मनीष चन्द्र गुप्त | कथा एवम चित्रांकन: अनुपम सिन्हा | कवर: योगेश कदम
एक ऐसा टोप जिसे पहनने से पहनने वाले व्यक्ति के अन्दर आश्चर्यजनक शक्ति आ जाती थी। कहते हैं जब सिकंदर और पोरस का युद्ध हुआ था तो सिकन्दर की हार को जीत में इसी टोप के धारक ने बदला था। यही टोप जब सिन्धु घाटी के खंडहरों में मिला तो वो रोमन सैनिक भी दुबारा जिंदा हो गया। अब ये रोमन सैनिक कुंदनपुर में हत्याएं कर रहा था और केवल ध्रुव ही इस गुत्थी को सुलझा सकता था।
आखिर कौन था वो व्यक्ति जिसने कुंदरपुर में आतंक मचाया था?
क्या वो असल में रोमन सैनिक था या उसके लिबास में कोई और?
उसका क्या मकसद था इन हत्याओं के पीछे?
ध्रुव का ये पहला केस है। लेकिन शायद प्रतिशोध की ज्वाला और इस केस के बीच में काफी वक्त गुजर चुका है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जहाँ प्रतिशोध की ज्वाला के वक्त ध्रुव के पिता राजन मेहरा एस एस पी थे वहीं इस केस में वो राजनगर के आई जी बन चुके होते हैं। ध्रुव ने अपनी एक कमांडो फाॅर्स तैयार कर ली होती है जिसके लिए उसने तीन कैडेट चुन लिए होते हैं और उनको ट्रेनिंग देने का फैसला कर लिया होता है।
अब कॉमिक्स पढ़ते हुए मैं यही सोच रहा था कि इस वक्फे में उसने क्या क्या किया? क्या उसे कोई और केस नहीं मिला। या वो इतना महत्वपूर्ण नहीं था। खैर, मेरे दिमाग में तो ऐसे प्रश्न आते ही रहेंगे लेकिन अभी इस कॉमिक्स की बात करतें है। इसमें कहानी को एक रहस्य का पुट देने की कोशिश की गयी है लेकिन मुझे ये अंदाजा हो गया था कि वो रहस्य क्या है। अगर मैं बचपन में इसे पढ़ता तो ये अंदाजा होता या नहीं ये नहीं कह सकता। लेकिन इस वजह से कहानी मुझे थोड़ा कमजोर लगी। चित्रांकन ठीक है। पहले जैसा ही। हाँ, ध्रुव भी अपने आप को सुपर कमांडो बोलता है, ये पढ़कर अब अटपटा लगता है। दूसरे बोले तो ठीक है लेकिन खुद को खुद ही ‘सुपर कमान्डो’ बोलना मुझे अजीब लगा।
आखिर में टोप के रहस्य की बाबत जो बताया गया वो भी मुझे नहीं जमा। इसमें औषधि टोप मिलने के बाद लगी थी या पुरातन काल से ही लगी हुई थी। अगर पहले से ही लगी तो एक सवाल ये बनता है कि क्या कोई औषधि इतने सालों तक सलामत रहती? ये टोप तो खंडहर से मिला था और इतने वक्त में इसको न जाने कितनी बारिश और अन्य प्राकृतिक चीजो का सामना करना पड़ा होगा। इतने वक्त में तो औषधि को खराब हो ही जाना चाहिए था।
और अगर बाद में लगाईं गयी थी तो पहनने वाले को औषधि के विषय में जानकारी कहाँ से हुई?
इसमें एक वक्त पे खलनायक फाइटर प्लेन और मोटर बोट चला लेता है लेकिन उसपे मैं ज्यादा ध्यान नहीं देता। मन में ये कहानी बना लेता हूँ कि उसने कहीं न कहीं पहले सीखा होगा और जगह की कमी के कारण हमे इस बात को नहीं बताया गया है। वरना टोप पहनने से ताकत आ सकती है लेकिन ऐसी चीजें चलाना नहीं।
खैर, मेरी व्याख्या से लग रहा होगा कि मैं बच्चो की चीजों को कितनी संजीदगी से पढ़ रहा हूँ लेकिन ऐसा नहीं है। मैंने अंग्रेजी कॉमिक्स पढ़े हैं तो ऐसी कमी उनमे नहीं दिखती है। इसलिए उनकी गुणवत्ता हिंदी वालों से बेहतर होती है। इस कहानी में जो सवाल मेरे मन में उठे उन पहलुओं पे ध्यान दिया होता तो इसकी गुणवत्ता बेहतर ही होती और कॉमिक्स अन्तर्राष्ट्रीय टक्कर की होती।
इसके बावजूद आप इस कॉमिक्स को एक बार पढ़ सकते है। इसका आनन्द लिया जा सकता है।
किताब इधर से मंगवा सकते हैं:
बचपन में मैं खूब कॉमिक्स पढ़ता था . ध्रुव तो मेरा फेवरिट था . तब उसकी जितनी भी कॉमिक्स मिली, सब पढ़ डाली .लेकिन १० साल का हुआ तो ये सब बंद हो गया . ८ साल बाद फिर से पढने लगा और बहुत सारी कॉमिक्स ढूँढ -२ कर पढ़ीं . लेकिन वो सब अब भूल – भाल गया हूँ .फिर कहानिया और नावेल पढने लगा .इन दिनों मैं नॉन फिक्शन पढ़ रहा हूँ …
कॉमिक्स आम तौर पर बच्चो के लिए ही लिखी जाती हैं .इसमें इतना तर्क मत लगाइए …..!!
आपने सही कहा। लेकिन मैंने बीच में डी सी और मार्वल के कॉमिक्स पढ़े थे तो इसलिए प्लाट होल्स देखता हूँ तो चुभते हैं। यही बात मैंने ब्लॉग म लिखी भी है। अगर हम अंतराष्ट्रीय प्रकाशकों से प्रतिस्पर्धा करनी है तो उन्ही के बराबर गुणवत्ता का मटेरियल देना होगा। वर्ण हम पिछड़ जायेंगे।जो बच्चे एक बार उन्हें पढ़ लेंगे फिर वो इनकी तरफ क्यों मुखातिब होंगे।
आप नॉन फिक्शन में क्या पढ़ रहे हैं ? मैं सब पढता हूँ। कभी कॉमिक,कभी फिक्शन और कभी नॉन फिक्शन।
इन दिनों मैं श्री अरविन्द व श्री माँ को पढ़ रहा हूँ . उनकी इवनिंग टॉक्स और दूसरी शुरुआती किताबें . हालांकि वे थोड़े जटिल हैं . और मैं ऐसे हिंदी लेखक ढूंढ रहा हूँ जिन्होंने हिन्दू – मुस्लिम सम्बन्धो पर मध्यममार्गी ढंग से लिखा हो यानी जो न वामपंथी हो और न दक्षिणपंथी . अगर आप ऐसे कुछ लेखक और किताबों के बारे में जानते हों तो सजेस्ट करें …….