बात निकलेगी तो फिर – सत्या सरन

रेटिंग : ४/५
पुस्तक ३१ अगस्त  से २ सितम्बर के बीच  पढ़ी  गयी

संस्करण विवरण :

फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : १६०
प्रकाशक : हार्पर हिंदी
अनुवादक : प्रभात रंजन



पहला वाक्य :
इसका कोई संकेत  भी नहीं था की मालूम पड़े की भविष्य में क्या होने वाला है।

जगजीत सिंह  जी का भारतीय गजल  गायकी में  एक  बड़ा  योगदान रहा है। वे उन चुनिन्दा गायकों में से हैं जिन्हें  ग़ज़ल को  आम लोगों के बीच प्रसिद्ध करने का श्रेय दिया जाता है।  मेरा  गजल के प्रति रुझान कुछ एक  दो  साल से हुआ  है  और उस वक्फे में जगजीत सिंह की ग़ज़लों ने मेरे ऊपर अमिट छाप छोड़ी  है।  ऐसे  में  उनके  विषय में  जानने की इच्छा मेरे मन में होना लाजमी था और इसलिए इस किताब को मैंने बिना  झिझके मंगवा लिया था।

‘बात निकलेगी तो फिर’  सत्या सरन जी ने मूलतः अंग्रेजी में लिखी थी। प्रभात रंजन जी ने इसको हिंदी में अनुवाद किया। वैसे तो मैं अनुवाद पढना  कम ही  पसंद करता हूँ लेकिन इस मामले  में मुझे इस किताब को हिंदी में ही पढना था। ऐसा मुझे इसलिए भी लगा क्योंकि मैं इस किताब को जगजीत जी के गाये हुए ग़ज़लों
और गीतों को सुनते हुए  पढना चाहता था और हिंदी उसके सबसे नज़दीक है।

अब पुस्तक की बात करें तो इसे पढ़ते हुए कभी भी नहीं लगता की आप अनुवाद पढ़ रहे हैं। भाषा में वो ही लय है  जो कि जगजीत जी  के गायन में थी। मुझे जगजीत जी के जीवन, उनके संघर्ष और जीवन से जुड़े  अन्य पहलुओं  के विषय में जानकारी मिली जिसने जगजीत जी की इज्जत मेरे नज़रों में और बड़ा दी। अगर आप जगजीत सिंह जी के विषय में जानने के लिए उत्सुक हैं और उनके विषय में काफी कम जानते हैं तो ये पुस्तक आपकी जिज्ञासा का निवारण करने में सफल होगी।

किताब का कवर भी मुझे बहुत भाया। अंग्रेजी में कहावत है कि ‘डोंट जज अ बुक बाय इट्स कवर’ लेकिन इस मामले में किताब  का कवर किताब की खूबसूरती  में इजाफा करता है। कवर के बनाने वाले को मैं इसके लिए बधाई देना चाहूँगा।  उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है।

किताब में जो कमी मुझे लगी  वो इसका इतना  संक्षिप्त होना,जगजीत जी के जीवन को कुछ स्मृतियों , कुछ  संस्मरणों में समेटना।  शायद मेरे  मन में उनके विषय में जानने की जिज्ञासा इतनी प्रबल है कि १६६ पन्ने इसको तृप्त करने के लिए कम लगते हैं।  बाकी जगजीत सिंह के विषय में मेरा ज्ञान पहले शून्य था इसलिए इस बात में कोई टिपण्णी नहीं कर सकता कि किताब में और क्या क्या होना चाहिए था।

अगर आप जगजीत सिंह जी के प्रशंसक हैं तो इस किताब को आपको ज़रूर पढ़ना चाहिए।  अगर आप भारतीय संगीत में रूचि रखते हैं तो भी इस किताब को आप पढना चाहिए।

किताब को आप निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं :
(बात निकलेगी तो फिर)अमेज़न – हिन्दी संस्करण


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *