पुराने गुनाह नये गुनाहगार – सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग: ४ / ५
अप्रैल २५ २०१५ से अप्रैल २८ २०१५ के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:

फॉर्मेट : ईबुक
प्रकाशक : न्यूज़हंट
सीरीज : सुनील #१

पहला वाक्य:
सुनील कुमार चक्रवर्ती, ब्लास्ट का क्राइम रिपोर्टर, अपने फ्लैट में बैठा आपे से बाहर हुआ जा रहा था।

पुराने गुनाह नए गुनाहगार पाठक साब का लिखा हुआ पहला उपन्यास है। उपन्यास १९६३ में पहली बार प्रकाशित हुआ था।  अब जबकि पाठक साब के पुराने उपन्यासों का  पेपरबैक संस्करण मिल पाना बेहद मुश्किल है ऐसे वक़्त में ईबुक ही उनके उपन्यासों का आनंद लेना का जरिया रह चुका है। उनके इस उपन्यास का मज़ा भी मैं न्यूज़ हंट एप्प के माध्यम से ही ले पाया।

सुनील कुमार चक्रवर्ती अपने फ्लैट में  बैठा बोर हो रहा था और उसकी पडोसी प्रमिला उसको चिढाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी। यानी रोज मर्रा कि ज़िन्दगी चल रही थी जब सुनील को एक लड़की का फ़ोन आता है जो उससे उसके होटल के कमरे में आने को कहती है। लड़की उसे बताती है कि जब वो नहा रही थी तो कोई उसके होटल के कमरे से सारा समान गायब करके चला गया। सुनील पहले तो चौकता है लेकिन फिर मदद के लिए तैयार हो जाता है। वहाँ जाकर पता चलता है कि वो लड़की रमा खोसला थी। लड़की के पिता ५ साल पहले हुई बैंक डकेती के सिलसिले में जेल में बंद थे और लड़की बराबर ख़ुफ़िया पुलिस के निगरानी में थी। अब सुनील के सामने सवाल है उसका सामान किसने गायब किया? दूसरी बात लड़की कहती है कि उसके पिता बेक़सूर थे तो फिर  इस पुराने गुनाह का गुनाहगार कौन था? क्या सुनील रमा की मदद कर पायेगा। क्या वो रहस्यों से पर्दा उठा पायेगा ? जानने के लिए इस उपन्यास को पढियेगा ज़रूर।

उपन्यास को पढ़कर सच बोलूँ तो मज़ा आ गया। उपन्यास में रहस्य भी था और रोमांच भी। उपन्यास आज से लगभग ५० साल पहले लिखा गया था लेकिन पढ़ते वक़्त कहीं से भी इस बात का पता नहीं चला। सुनील चक्रवर्ती और प्रभुदयाल के बीच की खींचतान ऐसी ही है जैसे हाल फिलहाल के उपन्यासों में है। हाँ जो फर्क मुझे दिखा वो रमाकांत के बोल चाल में था। मैंने सुनील सीरीज का उपन्यास जाल जब पढ़ा था तो उसमे सुनील रमाकांत को उसकी हिंदी के लिए टोकता है लेकिन इस उपन्यास में रमाकांत की हिंदी अच्छी थी। इसमें उसकी पंजाबी से लदी हुई हिंदी नदारद थी। शायद ये बात पाठक साब ने रमाकांत के किरदार में बाद में जोड़ी होगी। जिससे रामकांत के जरिये मिलने वाले मजाकिया माहोल कि कमी लगी।

खैर, इससे उपन्यास की रहस्यमकता में कोई फर्क नहीं पड़ता है । आखिर तक पाठक ये जानने के लिए सर खुजाता रहता है कि आखिर गुनाहगार कौन  है। और अंत में जब खुलासा होता है तो वो खुश होता है कि उपन्यास पूरा पैसा वसूल था। अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो पढियेगा ज़रूर। मुझे तो बेहद पसंद आया, उम्मीद है आपको भी आएगा। आपकी राय इस उपन्यास के विषय में ज़रूर दीजियेगा।

नोट: उपन्यास का काफी हिस्सा एर्ल स्टेनली गार्डनर के उपन्यास द केस ऑफ़ सनबाथर्स डायरी से प्रभावित लगता है।
उपन्यास को आप निम्न लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं :
न्यूज़हंट

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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8 Comments on “पुराने गुनाह नये गुनाहगार – सुरेन्द्र मोहन पाठक”

  1. हां,मैंने यह उपन्यास पढा है। वह भी ईबुक में उपन्यास मेरे को अच्छा लगा।
    अच्छी समीक्षा, धन्यवाद।
    गुरप्रीत सिंह, राजस्थान

    1. जी, अगर उपन्यास हार्डकॉपी में उपलब्ध नहीं है और ई बुक में उपलब्ध है तो मैं ई बुक में ही पढ़ना पसंद करता हूँ। पुराने उपन्यासों की हार्ड कॉपी की कीमत इतनी ज्यादा हो रखी है कि उतनी कीमत देने का मुझे तो साहस नही आता है। और फिर उस कीमत का कुछ भी हिस्सा लेखक को नहीं जा रहा है। ई बुक खरीद कर पढ़ने से लेखक को कुछ तो मिल रहा है।

      हाँ, यह उपन्यास अच्छा था।

    1. हाँ, प्लाट एक जैसे लग रहे हैं। मेरे पास पैरी मेसन के कुछ उपन्यास हैं। इसे भी पढ़ने की कोशिश करूँगा। आभार। हिंदी अपराध साहित्य इसीलिए वो ऊँचाई हासिल न कर सका जो बाकि भाषाओं के अपराध साहित्य ने करी। हिन्दी में अंग्रेजी उपन्यासों से काफी प्लाट इस्तेमाल करे गए हैं। जानकर दुःख होता है।

    2. जी मेरे पास Sunbather's Diary की ईबुक है और मैने जाँच की उसकी।

      आप कह सकते है कि वह 90% कॉपी ही है, यहा तक कि कई संवाद भी ठीक वैसे ही है और अंत भी।

      पाठक साहब ने अधिक केवल अनुवाद मे और भारतीय पृष्ठभूमि मे कहानी मे ढालने की मेहनत करी है, बाकी तो सब कुछ Erle साहब का ही है।

  2. अगर कॉपीड उपन्यास ओरीजिनल से बेहतर है तो उसे ही ओरीजिनल माना जाना चाहिये

    1. कुतर्क है। अगर ओरिजिनल नहीं होता तो कोपीड भी न होता।

    2. यानी की चोरी को नज़रअंदाज़ कर दे?

      हम भारतीयों पर हमेशा विदेशो से चोरी करने का आरोप लगा, क्योंकि हम भारतीय ऐसे ही चोरो को बक्श देते है।

      इसलिए भारत मे ओरिजिनल से ज्यादा कॉपी चलता है।

      जी मैं भी उपन्यास पर काम कर रहा हूँ और पूरी मेहनत कर रहा हूँ उसपर।

      मैं किसी का कॉपी नही कर रहा हूँ। यह इसलिए ताकि दुनिया को दिखा सकूँ कि हम भारतीय लेखक, खासकर हिंदी लेखक अच्छा लिख सकते है।

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