एक हसीना थी – ओम प्रकाश शर्मा

रेटिंग : २.५/५
उपन्यास पढ़ा गया : मार्च ३१ से अप्रैल ४ तक 

संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : २८५
प्रकाशक  :  रवि पॉकेट बुक्स
सीरीज : विक्रांत सीरीज

पहला वाक्य :
रात प्रकृति ने  अपना तूफानी रूप धारण कर रखा था।

राज्य के परिवाहन  मंत्री ज्ञान देव शर्मा का बेटा अजयराज शर्मा कई दिनों से लापता था। उसकी गुमशुदगी से मंत्री साहब परेशान थे। इसलिए केन्द्रीय खुफिया विभाग के एजेंट क्रॉस विक्रांत को इस केस को सुलझाने के लिए नियुक्त (अप्पोइंट) किया गया था।

 किसने किया था अजयराज का अपरहण? क्या ये राजनैतिक मामला था या व्यक्तिगत दुश्मनी?
वहीँ दूसरी और शहर में एक हसीना शिकार का लुत्फ़ ले रही थी। वो खूबसूरत लड़कों के शिकार कर उनको ममी में तब्दील कर रही थी। 
कहीं अजयराज इसी खूबसूरत युवती के रूपजाल में फंसकर इसका शिकार तो नहीं बन बैठा ? 
कौन थी ये युवती? 
क्या विक्रांत का इससे सामना हुआ और अगर हुआ तो क्या नतीजा निकला इनके मुकाबले का? 
ये सब सवाल आपके जेहन से इस उपन्यास को पढ़ने के पश्चात ही गायब होंगे।

एक हसीना थी (Ek Hasina Thi) लेखक ओम प्रकाश शर्मा (Om Prakash Sharma) की विक्रांत शृंखला का उपन्यास है।  उपन्यास का प्रकाशन रवि पॉकेट बुक्स (Ravi Pocket Books) द्वारा किया गया है। विक्रांत केन्द्रीय खुफिया विभाग का एजेंट है जिसे सरकार द्वारा पेचीदे मामले सुलझाने के लिए दिये जाते हैं। यह उसका पहला कारनामा था जो कि मैंने पढ़ा। 
 
एक हसीना थी (Ek Hasina Thi) की बात करूँ तो इसकी शुरुआत तो बेहतरीन थी और मुझे लगा था कि लेखक इस रोमांच को उपन्यास के अंत तक बना के रखेगा लेकिन अफ़सोस ऐसा हुआ नहीं। उपन्यास की शुरुआत में हम दोनों प्रमुख किरदारों से  रूबरू होते हैं – विक्रांत और रूपाली। लेकिन फिर लेखक ने रूपाली के इतिहास में तवज्जो दी जिससे ऐसा एहसास हुआ कि कहानी अपने मुख्य मार्ग से भटक सी गयी है। उपन्यास का काफी हिस्सा इसी इतिहास को समर्पित था। इस तरह से मुख्य कहानी को छोड़कर लेखक का रुपाली के इतिहास के तरफ सारा ध्यान केन्द्रित करने से मुझे थोड़ा बोरियत का अनुभव हुआ। अगर ये इतिहास कहानी के साथ साथ फ्लैशबैकस के ज़रिये उजागर किया गया होता तो कहानी कि गति बची रहती और पाठक इतिहास से परिचित भी होता। खैर, फिर मुख्य कहानी पे आने पर रुपाली और विक्रांत कि आँख मिचोली थोड़ा औसत दर्जे कि लगी। इसमें कुछ ऐसे बिंदु थे जिनके तरफ विक्रांत (Vikrant) का ध्यान  जाना चाहिए था लेकिन गया नहीं।

पहला, जब विक्रांत को डेविड ने बताया कि अजयराज को आखरी वक़्त एक युवती के साथ भेजा गया था तो उसने उसी समय उसका स्केच तैयार क्यों नहीं करवाया जबकि बाद में उसका स्केच मोबाइल की शॉप से तैयार कराया जाता है । अगर उसी वक़्त स्केच तैयार हो जाता तो विक्रांत को इतनी मेहनत मशक्कत नहीं करनी पड़ती।

दूसरा ये कि तैयार के स्केच के विषय में हमे बताया गया कि वो रुपाली का स्केच था। फिर पाठक को बताया गया कि रुपाली ने बालों का रंग बदलकर और आँखों में कांटेक्ट लेंस लगा कर रूप बदलने कि कोशिश की थी। अक्सर अपराधी ऐसा करते हैं लेकिन फिर भी उसका चेहरा मोहरा तो नहीं बदला था तो इससे विक्रांत ने उसे क्यों नहीं पहचाना। एक काबिल पुलिस अफसर के नाते उसका इस बदले हुए रूप से धोखा खाना अटपटा  जान पड़ता है । अगर विक्रांत को रुपाली पर पहले ही शक हो जाता तो वो आसानी से पकड़ में आ सकती थी।

“लड़की के बारे में कोई जानकारी मिली है क्या?”
“नो सर ।”,चेतन ने बताया, “उसका हुलिया जैसे हम उस दुकानदार के बयान के अनुसार तैयार कर चुके हैं।” उसने  फाइल में से एक तस्वीर निकालकर विक्रांत को दी, “ये हमारे कंप्यूटर एक्सपर्ट द्वारा तैयार उसकी तस्वीर है।”
विक्रांत ने तस्वीर ली।
उसे देखा।
वो रुपाली की तस्वीर थी। रुपाली के और उसके चेहरे में ज़रा भी अंतर नहीं था।

ये तो हुई वो बातें जो मुझे अटपटी लगी। लेकिन आप सोचेंगे कि केवल दो बातों के कारण इतनी कम रेटिंग देना क्या उचित है? तो, दोस्तों एक रोमांचक उपन्यास से मेरी उम्मीद ये होती है कि वो मुझे अपने पन्ने पलटने के लिए विवश करे और मैं इस विवशता तो पूरे उपन्यास को पढ़ने के दौरान महसूस करू । ये उपन्यास इधर ही मात खा जाता है। ऐसा नहीं है कि इसमें रोमांच बिलकुल भी नहीं है। शुरूआती और आखरी पृष्ठों में उपन्यास काफी रोमांचक है और यही रोमांच बीच के कुछ पन्नो में भी देखने को मिलता है । यहाँ तक कि आखरी में रुपाली और विक्रांत के फाइट सीक्वेंस के वजह से ही मैंने इस उपन्यास की रेटिंग 1.5 से 2.5 करकरी यानी ‘मुझे नापसंद है’  से ‘ औसत से थोड़ा बढ़िया है ‘। जो रोमांच इन पृष्ठों में था अगर वो पूरे कथानक के दौरान बना रहता तो उपन्यास दाद देने के काबिल बन जाता। 

अंत में यही कहूँगा कहानी ज्यादा अच्छे और रोमांचक तरीके से कही जा सकती थी। मैं ओम प्रकाश शर्मा (Om Prakash Sharma) के अन्य उपन्यासों को मैं  भविष्य में पढ़ना चाहूँगा क्योंकि क्या पता जैसे लेखन इस उपन्यास के शुरुआत और आखरी पन्नो में किया गया है वैसा ही लेखन अन्य उपन्यासों में पूरे उपन्यास में किया गया हो।

क्या आपने इस उपन्यास को पढ़ा है? अगर हाँ, तो आपके इसके विषय में क्या राय थी? अपनी राय टिपण्णी बक्से (कमेंट बॉक्स) में देना न भूलियेगा। अगर आप कुछ उपन्यासों के नाम साझा करना चाहते हैं तो इससे भी गुरेज न कीजियेगा।


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “एक हसीना थी – ओम प्रकाश शर्मा”

  1. मुझे तो पसंद आया ये नॉवेल बीच बीच में कई जगह धीमा हुआ कथानक का पेस पर ओवरऑल अन्य न पढ़े जा सकने वाले विक्रांत सीरीज के नोवेल्स से बेहतर है।

    1. जी मैंने विक्रांत का यह पहला उपन्यास पढ़ा था। उपन्यास मुझे भी पसंद आया इसलिए इसे औसत से थोडा अच्छा कहा है। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद लेखक के दूसरे उपन्यास अगर मुझे मिलते तो शायद मैं उन्हें भी खरीद कर पढ़ता लेकिन अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ।

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