आदमी घर के बाहर कदम रखते ही अपने को कपड़ों के अन्दर छिपा लेता है। नकाब पहन लेता है। किन्तु, घर के अन्दर खुला रहता है, नंगा रहता है। और, घर के अन्दर आदमी चाहे जितने नकाब लगाये रहे, जितनी बनावटी आकृतियों में कैद रहे, उसके घर का अन्तरंग स्वयं आदमी के वर्तमान और अतीत और सुरुचि और संस्कार का सही और सम्पूर्ण चित्र उपस्थित कर देता है।
– राजकमल चौधरी, ताश के पत्तों का शहर
किताब लिंक: हार्डकवर