तो वक्त ही बदल दो….
बदलने की ताकत सबमें नहीं होती…जिनमें होती है वे…वक्त को बदलते-बदलते खुद बदल जाते हैं….वे, जिनके पास यह शक्ति है, शायद वक्त को बदलना भी नहीं चाहते…सिर्फ इस्तेमाल करना चाहते हैं।
किताब लिंक: किंडल
साहित्य की बात, साहित्य से मुलाकात
सार्थक विचार।
जी आभार….
कमलेश्वर जी ने कम-से-कम भारत के सन्दर्भ में तो बिलकुल सटीक ही कहा है। इस यथार्थपरक विचार को साझा करने के लिए आपका आभार विकास जी।
जी सही कहा आपने सर.,, वैसे मुझे लगता है भारत के बाहर भी ज्यादातर लोग उसी श्रेणी के हैं जो इस्तमाल करना चाहते हैं…..