जनतंत्र झूठा है या सच्चा – यह इस बात से तय होता है कि हम हारे या जीते? व्यक्तियों का ही नहीं, पार्टियों का भी यही सोचना है कि जनतंत्र उनकी हार-जीत पर निर्भर है। जो भी पार्टी हारती है, चिल्लाती है- अब जनतंत्र खतरे में पड़ गया। अगर वह जीत जाती तो जनतंत्र सुरक्षित था।
– हरिशंकर परसाई, चुनाव के ये अनंत आशावान