पूजा स्थल भव्य इमारतें हैं, धर्म नहीं हैं। सच्चा धर्म भावना और आचरण में होता है। जिसे सर्वव्यापी माना जाता है, वह मंदिर या मस्जिद में कैद नहीं है। गरीबों के झोंपड़ीनुमा मंदिर में भी भगवान है और विशाल भव्य मंदिर में भी। जितनी विशाल धर्म की जरूरत होगी, उतना बड़ा झगड़ा होगा।
– हरिशंकर परसाई, हरिजन मन्दिर और धर्म
किताब लिंक: हार्डकवर
शुभकामनाएं
आभार….
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-04-2021) को "गलतफहमी" (चर्चा अंक-4026) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चाअंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार….
व्यंग्य लेखन के शिरोमणि परसाईं जी ने बिना व्यंग्य किए भी खरी बात कही है । साझा करने के लिए आभार विकास जी ।
जी आभार….
बहुत बहुत बधाई।
एंव शुभकामनाएं।
जी आभार….