बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में मनुष्य के पास समय ही कहाँ है! मनुष्य का आज का धर्म हो गया है- आगे बढ़ते चलो-सबको पीछे छोड़ते चलो-धक्का मारकर, चोट पहुँचाकर- किसी भी तरह बढ़ते चले जाओ। रुकने का समय नहीं, पीछे मुड़कर देखने का समय नहीं, दो क्षण सोचने के लिए भी किसी के पास वक्त नहीं – क्योंकि उन्हीं दो क्षणों में तुम्हारे पीछे के वे लोग तुमसे आगे बढ़ जायेंगे।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (13-12-2020) को "मैंने प्यार किया है" (चर्चा अंक- 3914) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार, सर।